ज्ञानपीठ-पूजान्जली | Gyanpith Pujanjali
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
584
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्ञानपीट-पूजाज्ञलि १
३ गृहस्थथमं
मोक्ष-माप्तिका साज्ञात् मार्ग मुनिधर्म ही है। किन्तु जो व्यक्ति मुनि-
धर्मको स्वीकार करनेमे असमर्थ होते हुए भी उसे जीवनब्रत बनानेमे
अनुराग रखते दै वे यदस्य धर्मके अधिकारी माने गये है। मुनिधर्म
उत्सर्गं मायं है ओर यदस्य धर्मं अपवाद माग है | तात्पर्यं यह है कि गहस्थ-
धर्मस आशिक आत्मशुद्धि ओर स्वावरम्बनकी शिक्षा मिल्ती है, इसलिए
यह भी मोक्षका मार्ग माना गया है।
समीचीन श्रद्धा और उसका फल--
जो मुनिधर्म या गहस्थधर्मको स्वीकार करता है उसकी पॉच परमेष्ठी
और जिनदेव द्वारा प्रतिपादित शालमे अवश्य श्रद्धा होती है। वह अन्य
किसीको मोज्षप्राप्तिम साधक नहीं मानता, इसलिए, आत्मशुद्धिकी दृश्सि
इनके सिवा अन्य किसीकी बन्दना और स्तुति आटि नहीं करता। तथा
उन स्थानोकी आयतन भी नहीं मानता जहॉ न तो भोक्षमार्गकी शिक्षा
मिलती है और न मोक्षमार्गके उपयुक्त साधन ही उपलब्ध होते है।
लौकिक प्रयोजनकी सिद्धिके लिए दूसरेका आदर-सत्कार करना अन्य बात
है | वह जानता है कि शरीर मेरा स्वरूप नही है, इसकिए शरीर, उसकी
सुन्दरता और बलका अदृद्धार नहीं करता ! धनः रेश्वर्य, कुर ओर जाति
ये या तो माता-पिताके निमित्ते प्रात होते ६ या प्रयक्षसे प्रा्त होते है।
ये आत्माका स्वरूप नहीं हो सकते, इसलिए इनका भी अहङ्कार नहीं
करता | ज्ञान और तप ये समीचीन भी होते हैं और असमीचीन भी होते
है। जिसे आत्मदृष्टि प्रात है उसके ये असमीचीन हो ही नहीं सकते,
इसलिए, इन्हें मोक्षमागंका प्रयोजक जान इनका भी अहङ्कार नदी करता ।
धर्म आत्माका निज रूप है यह बह जानता है, इसलिए अपनी खोयी हुई
उस निधिको प्राप्त करनेके लिए वह सदा प्रयत्नशील रहता है ।
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