भार्याहित | Bharyahit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाय्यीहित। ` .. ९९
. दीह |: -৭ ৮৯:
उपनेहे दुख भोग को चस परी हेवानि। ..
तरुणाई बिछ॒पत कटी जरा क्केशकी खानि॥ `:
जो्ांन रहीतो मानों संसारनें आनेकामुख्य
सख ओर प्रयोजन उसका अधरा रहा क्योंकि
दस कहने ओर समझने का सख घ्री को अपारं `
होंताह कियह संतान मरोह ॥ कम
९२---निन मुख्य प्रथोजनां सं स्री ससार
मे आ ह् उन्का स्मरण उसको अवश्य रखना
. चाहिये अथीत् नीरोग बालक का उत्पन्न करना
: अपनेपति संप्तान तथा मनष्य जातिके साथउचित ..
पमका निबाहना ओर नीरोगता की महिमाको
जान लेना एक सज्जन ने कहा है कि पहिला
धन नीरोगता ह संसार में आनेका जो कृत्य है
- उसकी मतभलो॥ 5২০৭ .
. १४--जअहूको उचित है कि नित चलाकिरी
कियाकर पर इस्के कारण अपने घरक कामघंधे
में हानि न पड़ने दे यह सीख सखीमान्र फो परम `
.. हितह परन्त इसका अर्थयह नहींहे कि जोखी म- `
य्यादाकं कारण बाहर निकसती पेठती नहींहें
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