भार्याहित | Bharyahit

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Bharyahit by रघुनागदास -raghunaghdas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाय्यीहित। ` .. ९९ . दीह |: -৭ ৮৯: उपनेहे दुख भोग को चस परी हेवानि। .. तरुणाई बिछ॒पत कटी जरा क्केशकी खानि॥ `: जो्ांन रहीतो मानों संसारनें आनेकामुख्य सख ओर प्रयोजन उसका अधरा रहा क्योंकि दस कहने ओर समझने का सख घ्री को अपारं ` होंताह कियह संतान मरोह ॥ कम ९२---निन मुख्य प्रथोजनां सं स्री ससार मे आ ह्‌ उन्का स्मरण उसको अवश्य रखना . चाहिये अथीत्‌ नीरोग बालक का उत्पन्न करना : अपनेपति संप्तान तथा मनष्य जातिके साथउचित .. पमका निबाहना ओर नीरोगता की महिमाको जान लेना एक सज्जन ने कहा है कि पहिला धन नीरोगता ह संसार में आनेका जो कृत्य है - उसकी मतभलो॥ 5২০৭ . . १४--जअहूको उचित है कि नित चलाकिरी कियाकर पर इस्के कारण अपने घरक कामघंधे में हानि न पड़ने दे यह सीख सखीमान्र फो परम ` .. हितह परन्त इसका अर्थयह नहींहे कि जोखी म- ` य्यादाकं कारण बाहर निकसती पेठती नहींहें




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