विक्रमांकदेवचरितं का सांस्कृतिक अनुशीलम | Vikramadevcharitam Ka Sanskritik Anushilan

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Vikramadevcharitam Ka Sanskritik Anushilan by अनिल कुमार त्रिपाठी - Anilkumar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[५11 | कुमार सिंह जी, श्री विनयकृष्ण पाण्डेय जी तथा अन्य इत्यसम्‌ समादरणीय जनों का हार्दिक नमन करता हूँ, अपनी सम्पूर्ण शक्ति से समर्पित सेवायें देने के लिए विनीत एवं उत्साही अनुजसम्‌ अतुल द्विवेदी, सूरज शुक्ल, प्रवीण त्रिपाठी तथा अनुराग तिवारी को मनस्वी तथा तेजस्वी होने का आशीर्वाद देता हूँ। पुनश्च, प्रत्यक्ष सहयोगी शुभच्छओं ` के अतिरिक्त कतिपय अन्य प्रियैषुओं को भी यहाँ स्मरण करना प्रासङ्किक हे, जिन्होनें णोध- सामग्री उपलब्ध कराने मेँतो नहीं लेकिन अपने स्नेहिल सहयोग, जिससे मे अधिकाधिक समय अपने शोध-प्रबन्ध को दे सका और मुझे उनकी ईश्वर से की गई कामनाएं सम्बल बनकर प्रेरित करती रहीं, उनके सुखमय भविष्य की मैं कामना करता हूँ। समस्त प्रयत्नों के बाद भी अपनी मन्दमति के कारण मुझसे -यहाँ पर यदि विश्लेषण करते समय सांस्कृतिक परिधि का अनपेक्षित उल्लंघन हो गया हो तो उसे अन्यथा न लेकर उदारचेता विद्वान्‌ उसका शोधन करने की कृपा कर, एतदर्थ कु परिवर्तन के शब्दों में कहने का साहस कर रहा हूँ- प्रयोग-सिद्धान्तविरूद्धमत्र यत्किज्चिदुक्तं मतिमान्धदोषात्‌ | मात्सर्ममुत्सार्य उदारचेत्ता. प्रसादमाधाय. समादधन्तु।। 1 (1 0 गच्छतः स्खलनं क्वापि भक्त्येव प्रमादतः। हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः || विनयावनत्‌ এপি স্পা निषा] अनिल कमार त्रिपाठी




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