प्राचीन भारत में समाजार्थिक परिवर्तन [600ई०पू० से 200ई० तक ] | Socio Economic Changes In Ancient India [ 600 B.C. To200AD.]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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उज्जैन तक पहुँचा।? दक्षिण में यह कृष्णा नदी पर स्थित अमरावती से प्राप्त हुआ
है। यह लम्बी यात्रा मौर्य साम्राज्यवाद के कारण सम्भव हुई होगी।13
उत्तरी काले पालिशदार बर्तन के साथ लोहे के बहुत से ओजार भी मिलते हे
जो भौतिक परिवर्तनों के विषय म जानकारी प्रस्तुत करते है। उत्तर मे पेशावर ओर
तक्षशिला से दक्षिण मे अमरावती से, पूरब मे वानगद् ओर शिशुपालगद् से तथा
पश्चिम में नासिक तक एसे मृद्माण्ड मिले है जो लौह युग के परिचौयक है।
तक्षशिला“ से प्राप्त लौह उपकरणों मे भाला, बद्इयों द्वार प्रयुक्त बसूला तथा एक
उन्नतोदर पृष्ठ भाग वाली द्री प्राप्त हुई है जिसका किनारा ऋजु है। हस्तिनापुर सं
एक कटीला साकेट-युक्त बाणाग्र, छेनी तथा ब्लेड वाला हैँसिया प्राप्त हुआ है।
कौशाम्बी!5 के सांस्कृतिक काल से उत्तरी काले पालिशदार मृद्माण्डों के स्तर में
लौह उपकरणों की अधिकता दिखाई पड़ती है। रुपरा? से कोीलें, हुक, छड़ें,
साकेटयुक्त बड़ी कीलें, मूठ, छुरे, हँसिए तथा भालों के अग्रभाग प्राप्त. होते हेै।
नालंदा से प्राप्त उपकरणों में छरे, भाले, छेनियाँ, ब्लेडयुकत फुलावदार हँसिये, चौकोर
आयताकार तथा षट्कोणीय बाणाग्र, दो धार वाले भाले, कुदार, कौलें तथा प्यालियाँ
सम्मिलित है। बहल?? से भालों के अग्रभाग छुरियाँ, भाले तथा छेनियाँ प्राप्त हुई हैं।
बिहार मे सोनपुर से कीले तथा ब्लड प्राप्त हुए हे! उपर्युक्त उपकरणों में हल,
सिये, हुक तथा गड़ासे की उपस्थिति से इस बात का आभास मिलता है कि प्रस्तुत
काल मे लोहा कृषि तथा उत्पादन के क्षेत्र ল पदार्पण कर चुका था)
लोहे की विभिन उपकरणों का रूप देने में धौंकनी” का प्रयोग महत्वपूर्ण
सिद्ध हआ होगा। 2 इस संदर्भ मर उज्जैन के उत्तरी काले पालिशदार बर्तनों के स्तर से
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