जो सुधर्म स्वामी ने सुना | Jo Sudharma Swami Ne Suna
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ )
शजगृही नगरी में महाराज श्रेशिक अपनी महारानी चेलना
के साथ सानन्द रहते थे | एक दिन महाराज अपने महल की ऊँची
मंजिल में रानी के साथ रात को टहल् रहे थे कि सहसा उनकी
नजर एक, सकान पर पड़ी । वहाँ के भीतरी दृश्य को देख कर उनके
. मह से निकल पड्ाः-धिक्कार है इसे ।?”
ये शब्द सुनते ही महारानी चोंक पड़ी और उसने विनय~
पूबक पूछाः-''चाथ ! यहाँ तो इस समय मेरे सिवाय दूसरा, कोई
नहीं है । पूछतो हूँ कि आपने धिक्कार किसे दिया दै ? क्या सुमते
वई भूल हो गईं £
“नहीं प्रिये ! तुम जसी पत्तिपरायणा सुशीलां पत्नी से कमी
कोई भूल हो नहीं सक्ती । मैने धिक्कार तुम्हें नहों दिया है।
लेकिन किसे दिया है ? यह जानना भी ठयथ है। हम यहाँ के शांसक
हैं-अनेक तरह के विचार हमारे मन में आते-जाते रहते है; इस-
लिए धिक्कार का कारण मत पूछी ।” महाराज ने कहां ।
किन्तु नारीहठ के आगे उनकी टालमटूल नहीं चल सकी,
इस लिए अन्त में उस सकान की ओर इशारा करते हुए महाराज
ने कहा:-“वह देखो | वहाँ का दृश्य देखते ही समझ में या जायगा
किं मैने कंसे धिक्कार दिया दै
महारानी चेलना ने ज्योंही उस ओर नजर डालो त्यों ही
उसे समझ में आगया कि महाराज ने कामदेव को धिक्कार दिया
है । बात यह थी कि उस मकान में ८०-६० बष के पति-पत्नी का
एक जोड़ा रतिक्रीड़ा में लगा था! महाराज श्रेशिक को विचार
गया कि जो कामदेव बुढ़ापे में भी मनुष्य को सताता रहता है.
उसे घिक्कार का पात्र ही समझना चाहिये। '
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