जवाहिर किरणावली ६ | Shri Jawahar Kirnawali-vii
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वास्ताविक शांति | श्री जवाहिर किरणावली [ ५
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कर् वष्ट बहुत प्रन हुश्रा । प्रशंसा करने लगा कि यह कैसा सुन्दर देश हे ।
यहां जमीन पर पड़ी हुई वेक में ही ऐसे सुन्दर फक छगते हं। मेरेदेशर्मेतो
ऊँचे वृक्ष पर ही फल लगते हैं| उस वक्त उसे मूल लग रही थी .-अत॥ एक फल तोड़कर
खाया । किन्तु फल उसे कड॒ुआ कणा | वह थू थू करता हुआ सवने रगा क्रि इतने सदर
फल में यह कड़आपन -कहों से आ गया ? यह सोचकर कि देखूं फठ कडुआ है पर पत्ते
कैसे हैं, उसने पत्ते चखे | पत्ते भी कडए निकले | फिर उसने फुर चखा तो वह भी
कड़आ मालम हुआ | अन्त में उसने उस वेल का मूल (जड) चखा | बडे दुख के साथ
उसने अनुभव किया कि उस वेल का मूल भी कडुआ ही था | उस व्यक्ति ने निर
किया के जिसका मूल हा कडुआ., होगा उसका सत्र श्रश कडुए ही हमि ।
सारांश यह है कि आप लोग श्रपने पुत्र को तो शान्तिदायक. पसन्द करते
किन्तु खुद को भी तपासियें कि आप स्वयं कैसे हैं ? कोई अच्छे कपड़े पहन कर अच्छा
बनना चाहे तो इससे उसकी अच्छा बनने की मुराद पूरी नहीं हो जाती । कपड़ों के परि
वरतेन करने से या सुन्दर सान सजाने ते आत्मा अच्छा नहीं बन जाता । इस्तसे तो ' शरौर
अच्छा लग सकता है | यादे खुद के भात्मा में दूसरों को शान्ति पहुँचाने का गुण हछोंगा
तभी म्नुप्य भ्रच्छा छंगेंगा और तभी संतान भी शान्तिदायिनी हो सकती है। `
महाराजा विश्वस्तेन सत्र को शांति पहुँचाने के इच्छुक रहते थे इसी से उनकी रानी
प्रचिरा के गभे मे भगवान् शान्तिनाथ ने जन्म धारण किया | जिन्त समय भगवान् शांतिनाथ
गर्भ में थे उस समय महाराणा विश्वस्तेन के राज्य में महामारी का भयंकर प्रकोप हुआ
प्रजा महामारी का शिकार होने लमी | यह देख सुन कर महाराजा बहुत चिन्तित हुए और
विचार करने छगे कि जिस प्रजा की रक्षा और बृद्धि के लिए मैने इतने कष्ट उठाये है वह किस
प्रकार काछ कबलित हो रही है । मेरी क्ितनी कमनोरी है कि जो मेरे सामने मरती हुई
प्रजा का मे रक्षण नहीं कर पाता हूँ । इस प्रकार महामारी का प्रकोप होना और प्रजा का
নলাল दाना আলু प्रजाक्त पाया का ही परिणाम शाट ह् 1 छु म र् নানা का भा परगाम নি |
जो कुछ हो, मुझे पाप पाप करके ही न बैठे रहना चाहिए किन्तु ऐसा प्रयत्न करना
कि जिससे प्रजा को रक्षा हो ओर उसे शान्त प्रा
এ
हो | यदि मेरे शरीर से यह
। सके तो फिर इस शरीर का धारण करना ही व्यर्थ है| मै निश्चय करता हूं कि
লগ সল। में कोई नया रोगी न होगा और जो रोगी है
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ष्ट पयु त दृस्त्य |
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न तक्र अ्रच्छ न हां जाये तत्र
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