विश्वचेतना के मनस्वी संत : मुनि श्री सुशील कुमार | Vishva Chetna Ke Manasvi Sant : Muni Shri Susheel Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भविष्य का कल्पतरु भारतीय सस्कति के निर्माण में सन्‍तो का योगदान सर्वोपरि है। मन, वाणी और काया से हिसा असत्य, चौयं ओर मैथुन का परित्याग कर अ्हिसा, सत्य, अचौयं, ब्रह्मचये ओर अपरिग्रह की पचवेणी के तीर्थसछिल से अखिल विश्व के कल्याण का ब्रत लेकर चरने वारे महान्‌ सन्तो ने आत्मपरीक्षा ओर सत्य, शिवम्‌ सुन्दरम्‌ का पावन उपदेश देकर जन- मानस को जहाँ नि श्रेयस्‌ का मार्ग दिखाया वही अपने लिए नाना प्रकार के उपसर्गों का वरण किया है। जैन धर्म की चर्या का तो कहना ही क्‍्या। क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दश अचेल, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृण, स्पर्श, जल, सत्कार-पुरस्कार, निशक, प्रज्ञा, अज्ञाम ओौर दक्षंन--दइन २२ परिषहो का वरण कर असिधारा मागं पर अनवरत रूप से चरता है । भगवानु महावीर ने साधु जीवनं के स्वरूपं का निदशन करते हए बताया है किं साधु को ममतारहित, निरहकार, नि शकं, ओौर प्राणिमात्रं पर समभाव होना चाहिए । लाभ-हानि, सुख-दु ख, जीवन-मरण, निन्दास्तुति, मान-अपमानं सब को समभावपूवंक स्वीकारते चलना अनमार का जीवन धर्म है । श्रमण भगवान्‌ महावीरं द्वारा प्रवतित अक्षुण्ण श्रमण-परम्परा के मूनिश्री सुशील कुमार जी महाराज २०वी शताब्दी के विद्यमान प्रकाश स्तम्भ हैं। वे एक विरत, नि स्पृह, सयमशीरू ओर सच्चारिव्य के धारक मनस्वी सन्त है, जिन्होने यौवन के प्रारम्भ के पहुले ही किशौरावस्था मे ससार के वैभव-विलास ओर माया-मोह को छोड कर चिरकारीन उदासीनता के महापथ का अनुसरण किया और नाता प्रकार की अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए सम्प्रदाय, जाति, धर्म, भाषा, समाज और वर्ग के अनेकानेक विषम कटको से भरे मागं का अपनी अदभुत क्षमता से परिष्कार कर राजमार्ग का निर्माण किया, जिसका अनुसरण कर आने वाली पीढिया जीवन और जगत्‌ की वास्तविकता से परिचय प्राप्त कर सकेंगी और उनके जीवन-यापन की पद्धति का पथ




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