नागरी प्रचारिणी पत्रिका | Nagri Pracharini Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रकाकरनी का उद्धवशतक १३
कहे रतनाकर सुदरंदावन ङुंजनि पे
वारित कोरि कोटि नंदन को भारीसी।
रजं की न जात बात बरनी हमारे जान
आठौ सिद्धि नौ निधि मग में बगारी सी ॥
निरखि निकाई बृजनागरि नवेत्िन की
रंभा उरबसी आदि ज्ञागति गेंवारी सी॥
पुनः २४ श्रक्तूबर के अ्रंक में निम्नलिखित एक ही कवित प्रकाशित
हु झा था--
(राधे मुख मंजुल सुधार के ध्यान ही ते
प्रेम रन्नाकर हिये यों उमगत है|
त्यों ही बिरहातप प्रचंडि ते उम्रडि अति
মহন उसास को मकोर यों जगते |
खेवट विचार को ब्िचारो पचिष्टारि जात
होत गुन पाल ततकाज्ञ नभगत है।
करत गंभीर धीर लंगर न काज फेर
मन को जहाज डगि डूबन ल्गत हे ॥
तरपश्चात् ३१ श्रक्तूजरके श्रकमे निम्नलिखित दो कविच्च प्रकाशित
किए. गए ये--
चत्नत न चारो भाँति कोटिन विचारो तङ
दाबिदाबि हारो पे से टारो टसकत है ।*
परम गहीली बसुदव देवकी की मिली
चाह चिमटी हूँ सों न खेंचे खसकत है।
सहिये कहाँ लों कहा कहिये न रंचक हूँ
धीरज मदार दूध धारे मसकत है।
३४, चंद्रमा को देख समुद्र का डमग़ना तो स्वाभाविक ही है परंतु यँ यष
विचिश्रता है कि इस मुखचंद्र के ध्यान ही से प्रेम समुद्र उमगता है ।
४६५, चिज्ञान शासत्र का यह नियम है कि गर्मी से हवा चल्नती है।
३६, दबाने से काटा निकल जाता है। पकबनेवात्ली मिलो से यहाँ यह तास्पयं
है कि जैसे चिमटी में दो भाग होते दें, इसी प्रकार यहाँ पसुदेव और देवकी
की चाह से मिलकर यहं चिमटी बनी है, साभिप्राय विशेषण है ।
३७, मद्र के दूध से भी काटा गल जाता है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...