तामसी | Taamsii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.91 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामेश्वरप्रसाद मेहरोत्रा - Rameshvrprsad Mehrotra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहस करे यह महाबलसिंह जमादार या सुशीला ज़मादारिन के बरदाश्त के बाहर की बात थी । पहला तो शुरू से ही कुछ खटपट कर रहां था दूसरी भी श्रब टोक बैठी । ताजुकदार ने हाथ उठा कर उनको शांत करते हुए गंभीर स्वर में कहा कौन ठीक होगा कौन ठीक न होगा यह सोचने का काम मेरा है । फिर भी ठुमसे एक बात पूछना चाहता हूँ कि ठमने जो सब के लिए कहा क्या बही बात. तुम्हारे लिए नहीं है तुम्हें भी तो एक दिन घर लौट कर परिवार का भार उठाना ही पड़ेगा ? हेना एक क्षण मौन रह कर सोचती हुई बोली जी नहीं मैं उस दिशा में निशिचन्त हूँ । थ बात बहुत सहज स्वाभाविक थी फिर भी बहुदर्शी जेलर मद्देश ताललुकदार के दृढ़ हृदय को भी उसने जैसे छू लिया । उन्हें इस अआश्चर्यमयी लड़की के पूर्व जीवन का कोई भी इतिहास नहीं मालूम था | ऊपरी दृष्टि से जो कुछ भी उन्होंने देखा -उससे उनके मन में या कि इस उम्र में जानबूभ कर सुसीबत में जो पड़ना चाहती है चह् केवल परोपकार मात्र की ही प्रेरणा नहीं है । जेलर साहब को निरुत्तर देख कर उसका उत्साह बढ़ा श्र वह पक कर वाडं के भीतर से कैदी टिकट लाकर उनके. सामसे करती हुई बोली तब आप लिख दीजिए इस पर | सुशीला घमकी भरे स्वर में बोली तू पागल हो गयी है क्या कया यह समय कोई काम तय करने का है दे अपना टिकट हमें दे दे | बाप ठहरिए तो. सासी माँ कुछ श्राग्रहपूणां शब्दों में हेना बोली श्रमी न कराने से पता नहीं कल इन्हें याद रहे या न रहें । फिर इस मासले में मड़काने वालों की भी तो कसी नहीं है । इतना कह कर उसने एक नज़र डाक्टर पर डाली । ताल्लुकदार ने उसके हाथ से टिकट ले लिया । उस पर नज़र डालते ही श्रपराध की धारा १
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