सलूना पर्व पूजन | Saluna Parv Pujan

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Saluna Parv Pujan by दरबारीलाल - Darbarilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ 9) घोला वर मांगो विश्रराज, दूगा मनवांछित द्रव्य आज | पग तीन भूमि याची दयाल, बस इतना ही तुष दो नृपाल । नृप हँसा समझ उनको अजान,बोला यह क्या लो,ओर दान । इससे वुछ इच्छा नहीं शेष, बोले वे ये ही दो नरेश ॥ सकंल्प किया दे भमि दान, ली वह मनमें अति मोद मान । प्रगटाई अपनी ऋद्धि सिद्धि, हो गई देहकी विपुल बृद्धि ॥ दो पगम नापा जग समस्त, ही गया भृष बलि श्रस्त-व्य्त । पग एक ओर दो भमिदान, बोले बलिसे कर्णानिधान ॥ नतमस्तक बलिने कहा अन्य, है भूमि न पुपर ই अनन्य । रख लतं पग प्रुकपर एक नाथ, मेरी हो जाये पूर्ण बात | कह कर तथास्तु पग दिया आप,सह सका न बलि वह मार-ताप | बोला तुरन्त ही कर विलाप, करदें अब मुझको क्षमा आप ॥ में हूँ दोषी सेहं अजान, मने श्रपराध किया महान | क সপ ये दखित किये जो साधुसन्त, अब करो क्षमा हे दयावन्त ॥ तब की मनिवरने दया-दृष्टि, हो उठी गगनस मधुर वृष्टि । पागये दग्ध वे साधु-त्राण, जन-जनक पुलकित हुये प्राण ॥ घर घरमें छाया मोद-हास, उत्सवन पाया नव प्रकाश । पीड़ित मुनियोंका पूर्णमान,रख मधुर दिया श्राहार दान ॥




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