राजस्थान का पिंगल साहित्य | Rajsthan Ka Piangal Sahitya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rajsthan Ka Piangal Sahitya  by मोतीलाल मेनरिया - Motilal Menriya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मोतीलाल मेनरिया - Motilal Menriya

Add Infomation AboutMotilal Menriya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
১১৬ ७ सित्रांकन किया गया है। जयपुर के पोधीखाने में रज्मनामा (महाभारत का फारसी मे सारांश) की एकं सचित्र प्रति सुरक्षित है जो सुगर सन्नार्‌ अकषर की आज्ञा से तैयार की गई थी ।** इसप्रें १६५९ चित्र हैं। इस पर चार लाख पया खर्च हुआ था और अकबरी दरबार के चौद॒ह चित्रकारों ने इस पर काम किया था ।ং यह ग्रन्थ भारतीय चित्रकला के भंडार का जनमोल रस्म है जोर मुद्रित भी हो चुछा है। इस प्रकार की चित्रित पोथियों का सबसे बढ़ा संग्रह उदयपुर के “सरस्वर्ती-४डार” में पाया जाता है जहाँ लगभग ५० अंथ विद्यमान हैं । रिस्प-संगीतकलय भौर चित्रकला के समान प्राचीन फाछ में राजस्थान की छिल्पकला भी बहुत बढी-चढ़ी थी। आवृ , चित्तीड, नागदा, चंदावती, झालरापाटन आदि स्थानों के कुछ प्राचीन देवालयोंमें खुदाई का काम इतना सुन्दर और बारीकी के साथ किया गया है कि उसे देखकर मनुष्य चकित रह जाता है। इसी तरह बहुत से अन्य स्थानों में भी शिव्प-चातुर्य के उत्कृष्ट नमूने पाये जाते है। उदयपुर से कोई सवा सौ मीछ पूरब दिशा में बाढोली नामक एक छोटा-सा प्राचीन गाँव है जो नवीं-दशवीं शताडिदियों में बहुत सम था और भद्गावती नामसे पिख्यात था। यहाँ शिव, विष्णु, गणेश, त्रिमूर्ति आदि के कई जीर्ण-शीर्ण मन्दिर हैं जिनकी कारीगरी की भारतीय शिल्प के विशेषज्ञ फग्यूंसन ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है, ओर शेषशायी नारायण की मूर्ति के सम्बन्ध में तो यहों तक कह दिया है कि मेरी देखी हुई हिंदू सूर्तियों में यह सर्पोत्तम है ।? प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टाड ने भी यहाँ की तक्षण- कला को अद्भुत जोर वर्णनातीत बतलछाया है ।* भापा-प्राचीन काऊू ये राजरथान की राजकीय भाषा संस्कृत थी। विद्वान लोग अपने भ्ंथोढी रचना इसी भाषा में करते थे और यहाँ के दानपच्र तथा शिलालेख जादि भी इसी भाषामें लिखे जाते थे । लेकिन जनसाधारण की भाषा प्राकृत थी । अशोक के समय का एक स्तम्म-लेख जयपुर राज्यान्तर्गत १८. टी° एष्व हेंडले' मेमोरियय्स अ,व दि जयपुर ऐग्जिबिशन, भाग चत॒र्थ, भूमिका, ए० १ । १९, वही; १० २। २०, दि हिस्ट्री आव इडियन ऐड ईस्टर्न आर्किटेक्चर, पृ० १३४ | २१, दि एनत्स एड एटिक्बिटीज आव राजस्थान (क्रक्स का संस्करण), पृ० १७५२-१७६४ |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now