स्वच्छंदतावादी समीक्षा : नए आयाम | Swachandtavadi Sameeksha Naye Aayam

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Book Image : स्वच्छंदतावादी समीक्षा : नए आयाम  - Swachandtavadi Sameeksha Naye Aayam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 स्वच्छन्दतावादी समीक्षा : नये आयाम है । वैसे अग्रेजी समीक्षा साहित्य मेँ २०८ शब्द का प्रयोग उस कवित्ता के लिए किया जाता रहा है जो 1789 मे विलियम न्तौक के 5018 07 1००८६०९ से प्रारम्भ होकर कीटूस ओर शेली की मृद्यु के पश्चात्‌ स्वयं भी समाप्त हो गयी। अंग्रेजी साहित्य में इस काल को 1२०॥राक्षा10 886 कहा गया और इस काल की कविता २०217 कविता कहलायी । इसके प्रतिनिधि कवियों मेँ थे-1191५6, .(০01677059) ৮/০705৯৮0761), लाट भात 26965, पाश्चात्य स्वच्छन्दतावाद का प्रारम्भ वैसे 18वीं शताब्दी में हो चुका था किन्तु वह अपने पूर्ण विकास को 19वीं शताब्दी तक ही प्राप्त हो सकी थी। प्रो० अजब सिंह के अनुसार, “19वीं शताब्दी के प्रथम तीन दशकों में अंग्रेजी-साहित्य के सर्जनामक एवं आलोचनालक क्षेत्रों में एक नयी विचारधारा विकसित हुई, जिसे साहित्यकारों ने स्वच्छन्दतावादी चेतना की संज्ञा से सम्बोधित किया। इस प्रकार अन्य भाषाओं के समान अंग्रेजी साहित्यिक आलोचना का भी अपना इतिहास है। अंग्रेजी साहित्यिक आलोचना के इतिहास को सामान्यतः तीन युगों में विभक्त किया जाता है। प्रथम युग एलिजाबेध तथा मिलटन का है, दूसरा पुनरागमन (110५8110) से फ़्ांस की राज्यक्रान्ति तक तथा तीसरा युग फ्रांस की क्रान्ति से लेकर आधुनिक काल तक का है। “2 अंग्रेजी 1२०गराक्षापंलंडा।' का समय द्वितीय युग के अंत और तृतीय युग के आरम्भ का माना जाता है। फ्रांस की राज्यक्रान्ति के फलस्वरूप ही विद्रोह के स्वर मुखरित हुए और इस विद्रोह ने साहित्यिक जगत्‌ में भी अपने पैर पसारे। सामाजिक, राजनीतिक और व्यावसायिक क्रान्ति ने तो सम्पूर्ण यूरोप, फ्रांस, इंग्लैण्ड को भी अपने आगोश में ले लिया था। बंधनमुक्ति की लालसा प्रत्येक मनुष्य की ` प्रियसंगिनी बन चुकी थी। ऐसे में कला साहित्य अपने को किस प्रकार बाँध सकता था। इस प्रकार रोमांटिक कला का जन्म हुआ। अंग्रेजी के सर्जनामक और आलोचनात्मक साहित्य में एक नयी विचारधारा, नयी चेतना जागृत हुई जो तत्कालीन परम्परावादी सिद्धान्त का विरोध और विद्रोह रूप थी। परम्परावादी चेतना कला की चेतन-प्रक्रिया का परिणाम है, जिसमें भावना, कल्पना तथा अचेतन को कोई महत्त्व नहीं प्राप्त था किन्तु वईसवर्थ और कॉलरिज नवीन सर्जनामक विचारधारा के उन्नायक थे। प्रतिभा, प्रेरणा, कल्पना ओर आविष्कार सभी शब्द उसके काव्यशाख के भण्डार में थे । उनके सयुक्त प्रयल से ही स्वच्छन्दतावाद न एक नवीन आन्दोलन का रूप धारण किया था 4 वईसवर्थ, कॉलरिज, शेली ये सभी कवि अपने युग-विशेष की केवल विचारधारा का ही प्रतिनिधित्व नही करते वरन्‌ इन सभी के पीठे एकं अलग संस्कृति की लहर स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है ओर अपनी उस विशेष संस्कृति की लहर को प्रवाहित करनेवाले ये समस्त कवि उस लहर के सर्वोच्च शिखर भी हैं। इन सभी कवियो के प्रयलों का ही परिणाम है कि आज अंग्रेजी साहित्य-शास््र में साहित्यिक आलोचना का एक सर्वथा भिन्न स्थान है। | प्रसिद्ध मनोवेज्ञानिक स्वच्छन्दतावादी समीक्षक डं० देवराज उपाध्याय ने अपनी एकमात्र पुस्तक रोमांटिक साहित्य-शाघ्न में पाश्चात्य स्वच्छन्दतावाद पर चर्चा करते हुए वईसवर्थ एवं कॉलरिज के डां० अजब सिह : ककव्कच्छन्दताकाद पृ० 9 डॉ० देवराज उपाध्याय : अपनी गत तपेकटिक कहिय-शत्र, वही, डॉ० अजब सिंह : खवत्वच्छन्दद्काढ़ पृ० 9 न> 14 ि बच 5




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