नविन दर्शन | Navin Darshan

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Navin Darshan by केशवदेव उपाध्याय - Keshavdev Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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চর [£ ] शक्ति के नाना रूप तथा उनके द्वारा संचालित कम यही विपय था । यह वात्तालाप घंटो चछता रहा। युवक से कई बार गणशजी के मत का खंडन भी किया, परन्तु किसी हद तक वह गणेशजी के तेजस्वी व्यक्तित्व एवं उनकी योग्यता से अलधिक प्रभावित्त हो चुका था । गाड़ी का समय हो गया था। गणशज्ञी ने जब बिस्तर गोल करने को कहा तो 'नवीनां जी हंस पड़े और बोले चिस्तर क्या बाधना। 'ले छुगरिया चछ डगरिया-धोती कंचल ক্ষতি ঘৰ; ভাল ভারা হা मे! । इतना कहकर युवक मे स्टेशन की राह ली। गणेश जी के व्यथिन नेत्रों मे आस छलछुला आये। उनके स्पन्दिन रय से एक आह निकली और चै चीग्व पड़े 'अरे वताया भी नहीं आर इसी एक कम्बलछ पर सारी रात रिदुरते रह ।' सन ही मन बालकृष्ण পুত सपण गणेश जी को अपना जीवस समरपित कर चुके थे। काम्रे स से घर छोौट कर युवक ने मेट्रिक की परीक्षा दी थी। दिन बीते ओर एक बेदना भरे सन्देश ने लेखनी का आश्रय छेने को बाध्य कर दिया। 'नवीन'की पहली रचना एक कहानी थी। शीरपक था 'संतृः इस नाम का एक व्यक्ति नवीनः क्रा मित्र था; जो उनसे सेकड़ों मील दूर अपनी ज्ोचन छीडा समाप्त कर चुका था। यह कहानी उसी कीस्प्रति वन कर लेखनी से खतः ट पड़ी ओर उपनामो के नये चिच मे प्नवीतः' भी नव जीवन लेकर अये | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी उन ढिनों सरम्बती के सम्पादक थे और श्री हरिभाऊ उपाध्याय उनके सहकारी । कहानी प्रकाशनार्थ नवीनजी ने हिवेदीली के पास भेजी। कहानी पढ़ कर द्विवेदी जी ने उपाध्याय ली से कहा--इन्हें पत्र लिख कर पृष्टो कि किम ब्ंगला कहानी का यह अनुवाद किया गया है, उत्तर में नवीनः जी ने लिखा मे तो वंगछा जानता ही नहीं और यह कहानी मेरी




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