रविन्द्र कविता कारन | Ravindra Kavita Kanan

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Ravindra Kavita Kanan by विश्वकवि रवीन्द्रनाथ - Vishavkavi Ravindrantah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रवीच्द्र-कविता-कानन १३ ठंडे होकर, कुर्ता पहन, पदाथं विद्या, मेघनाद वघ काव्य, ज्यामिति, गणितं इतिहास, मूगोल গাহি গল विषयोका श्रम्यास करना पठता भा । फिर स्कलसे लौटकर ददम ग्रौर जिमनास्ट्कि सीखते यं । रविवारको गाना सिख- लाया जाता था \ सीतानाय द॑त्त महाय मन्तोके द्वारा कमी-कमी पदाथं- विज्ञानकी शिक्षा देते थे । कैम्बल मेडिकल स्कूलके एक विद्यार्थसि अस्थि-विद्याकी दिक्षा मिलती थी । एक तारोंसे जोडा हुआ नर ककाल पाठागारमें लाकर खडा कर दिया गया था | उबर हेरम्व तत्वरत्त मुकुन्द सच्चिदानन्दसे आरम्भ कर 'मग्धवोध' व्याकरण रटा रहे थे। वालक खीद्धताथको अस्थि-विद्याके हाड़ो ओर बोददेवके सूत्रोमे हाड ही अधिक सरस और मुलायम जान पडते थे । वगभाषाकी शिक्षाके परिपुष्ट हो जाने पर इन्हें अगरेजीकी शिक्षा दी जाने लगी । पहले पहल दहं प्यारीलालकी लिखी पहली मरौर दूसरी पुस्तक पढायी' गयी, फिर एक पुस्तक श्राक्सफोडं रीडिगकी 1 श्रगरेजीकी रिक्षा रवीन्द्रनायका जी न लगता था 1 पठतते-पठते शाम हो जाती थी । मन अन्त पुरको श्रोर मागा करता था। दित मरकी मिहनतके बाद थका हुआ मन क्रीडाकी गोद छोड कर विदेशी भाषाके निर्देय वोझके नीचे दवा रहना कैसे पसन्द करता ? रवीद्ध- नाथको इस समय की दयनीय दश्ाकी स्मृतिर्मे लिखना पड़ा है---“उस श्रग्रेजी पुस्तककी जिल्द, काली भाषा क्लिष्ट विषयोंको, विद्यार्थियोंसे जरा भी सहानु- भूति नही, वच्चोपर उस समथ माता सरस्वतीकी कुछ भी दया नही देख पड़ी । प्रत्येक पाठ्य-विषयकौ इयोढीपर सिलेबुलोंके द्वारा अलग किया हुआ उच्चारण, और ऐकसेण्टोको देखिये तो आप समझेंगे कि किसीकी আল বললি लिये वन्दूकपर सगीन चढायी गयी है।” अंग्रेजीकी पढ़ाईसे रवीद्धनाथकी उदासीनता देखकर मास्टर सुवोधचन्द्र इन्हें बहुत घिवकारते थे । इनके सामने एक दूसरे छात्रकी प्रशसा करते थे। परन्तु इस उपमान और उपमेयकी छटाई वडाई यान्ती इस सर्मालोचनाका प्रभाव रवीन्द्रनाथपर बहुत कम पडता था। कभी-कभी इन्हें लज्ज़ा तो झाती थी, परन्तु उस काली पुस्तकके अधेरेमें पेठनेका इस्साहस भी एकाएक न कर सकते थ । उस समय शातिका एकमात्र सहारा




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