गजगुणरूपक - बन्ध | Gajgunrupak-bandh

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Gajgunrupak-bandh by फतहसिंह - Fatehsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` भूमिका. এস “महरण-रम्म मत्यियों, तेम तुडि दकखण मारी॥। पातिसाह हुई प्रसन, हुकम किय पंच हजारी ४ मंडोवर नरसमंद, জীভ सनतसप वष्धारे। दे नग्गारा तोग, तुरी साकति सिंगारे॥ फुरमास सुपारसि मोकली, दिढ़ राजा “दलथंभ” तू । जागीर दीघ जोगरि-पुर, करिएयया-गिर पध्ांचौर सू ॥/! ... _तत्पदचात्‌ महाराजा गजसिह ने मलिकापुर, रोहिण-खेड़ा, बालापुर महकर, निरोह, खिड़की, दोलताबाद, मुग्गीपट्टन, खांचदेश, महाराष्ट्र, बराड़, अहमदनगर तथा सेतुबेध रामेशवर तक सव स्थानों पर दक्षिणी सेना को परास्त कर दिया। इस पर सम्पूर्ण दक्षिणी सेना ने संगठित होकर पुन: महाराजा पर श्राक्रमण ` किया । इन्होंने बड़ जोश के साथ श्रपनी सेनाकोतेयार कर के प्रत्याक्रमण किया जिससे दक्षिणी सेना भाग गई । ` महाराजा गजरसिहु ने वैसे तो दक्षिण में कर स्थानों पर विजय प्राप्त को कु | किन्तु उत्तमें निम्त पाँच स्थान श्रतिमहत्त्वपूर्ण ये--- १ महकर, २ मेंल्हावा, -.. ३ बालापुर, ४ बुरहानपुर तथा ५ दक्षिण के शेष प्रान्त । जव साल भर तक . दक्षिणी सेनां महाराजा से लगातार परास्त होती रहीं, तो “श्र॑वर ने सभा करके कहौ किउत्तरी सेना के सामने श्रपना पुरुषार्थं नहीं चलेगा श्वर उसने , बादद्याह्‌ की घघीनता स्वीकार करके संधि करली 1 इस प्रकार महाराजा गजसिह के सेनापतित्व में शाहुजादे खुरंम्‌ ने लगभग ढ़ाई-तीन मास में ही .दक्षिणियों को अपने श्रधीन कर. लिया श्रौर उसने भीम .. सीसोदिया' को भी:विदा कर. दिया । बादशाह का नूरजहाँ के बहकावे में शभ्रा : कर खुरंम. को बादशाहत से वज्चित करने के प्रयत्न करने के. कारण शाहजादे खुरंम के दिल में बादशाह के प्रति विद्रोह की श्ररिन जल रही थी, নল: जिस .. “देर सुलतान” (शाहजादे खुसरो) को-बादशाह से मांग कर श्रपने साथ लाया “था, उसे उसने मरवा डाला दर _ “आंणियो द्रोह ंतहकरण, पाडो खुरमह पंत्रण । ततकाल “सेर” सुरतांण री, कीघो श्रञ्जुगतौ मरण ॥२॥ (पृ० १०७) , १-- रेः मे “सारघाड़ के इतिहास” पु० २०३ में लिखा हैः--- भोम मेवाड़ की उस सेना फा सेनापति या, जो उप्त समय महाराणा कर्णासह की | तरफ सेः बादशाह सेना मे रहा करती थी) जहागीरने मीम को राजा की पदवी तथा `. दोडेकौजागोरदी यौ । फलं समय बादही वहु वदश्षाहु को-छपौ सेर्षाच हजारी मंस : तक पहुँच गया था। ः




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