चरण सूत्र प्रदीप | Charan Sutar Pardeep

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Charan Sutar Pardeep by चंद्रगुप्त वार्ष्णेय - Chandragupt Varshney

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 प्रत्येक जाति के अपने-अपने परम्परागत रीति-रिवाज और संस्कार भी होते हैँ । इन्हें तोड़ने पर जाति से छेक दिया जाता है जिसे हुक्‍का-पानी बंद करना कहते हैं । यह 'भी जातिधर्म है, परन्तु अब इन वाता पर ध्यान नहीं दिया जाता छेकने या जातिच्युत करने की प्रथा अब समाप्त हो गयी है । ग्राम धस कृषि प्रधान देश होने के कारण प्राचीन भारत में राज्य~व्यवस्था ओर समाज-व्यवस्था की इकाई ग्राम ही होती थी । आरम्भ में तो प्रत्येक ग्राम स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होता था । ये ग्राम आपस में लड़ा भी करते थे । इन युद्धों को संग्राम कहते थे | बाद में यह शब्द 'युद्धा का वाचक वन गया । कालान्तर में ग्रामों को मिलाकर जनपद बने और जनपदों से राष्ट्र बना । राष्ट्र में भी प्रशासन की इकाई भ्राम ही रही । मनुस्मृति के अनुसार ग्राम की व्यवस्था के लिये ग्रामिक' नामक अधिकारों होता था । यह शब्द ऋग्वेद में भी मिलता है। कौटलीय अर्थशास्त्र में ग्राम से लगाकर राष्ट्र तक की शासन व्यवस्था का वर्णन है। इससे प्रकट होता है कि मौर्य काल में भी यह व्यवस्था चालू थी। चूकि प्रत्येक ग्राम स्वतन्त्र होता था, सो उसकी रक्षा करना और उसमें न्याय-व्यवस्था बनाये रखना प्रत्येक ग्रामवासी का धर्म या कर्त्तव्य होता था | ग्राम का शासन पंचायत करती थी जिसमें ग्राम के सभी लोगों के प्रतिनिधि होते थे। पंचायत का फंसला सभी को मान्य होता था। ग्रामिक या गोप नामक अधिकारी, जो राज्य का प्रतिनिधि होता था, वह ग्राम की गतिविधियों की देखरेख करता था । ग्राम पर कोई विपत्ति आ जाये, अकाल पड़ जाये, या शांति भंग हो जाये, तो यह्‌ अधिकारी उसके उपाय करता था ओर राज्य को ধুলা देता था | राजस्व वसूल करना भी इस अधिकारी का कार्य होता था ! ग्राम पंचायतों की यह व्यवस्था भुगलकाल मेँ भीं चलती रही, परन्तु ब्रिटिश राज में इसकी गिरावट शुरू हो गयी। लेकिन फिर भी इसके अवशेष गांवों में पाये जांते हैं । पंचायती राज फिर शुरू हो गया है, पर पंचायतों को उतने अधिकार नहीं जितने होने चाहिए । ग्रामधर्म की भावना अब इसी में रह गयी है कि गांव की कुछ परम्पराओं और रीति-रिवाजों को लकीर पीटने की तरह निवाहा जाता है । इसके अलावा गांवों पर अब शहरी सक्यता और संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। देश धसं देश शब्द पृथ्वी के किसी भागया स्थान का वाचक है । अपना स्थान छोड़कर किसी दूसरे स्थान को जाना परदेश जाना कहा जाता था। आजकल




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