टीकमगढ़ जनपद के सेवाकेन्द्रो का भोगोलिक विश्लेषण | Tikamgarh Janpad Ke Sevekendron Ka Bhogolik Vishleshan

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Book Image : टीकमगढ़ जनपद के सेवाकेन्द्रो का भोगोलिक विश्लेषण  - Tikamgarh Janpad Ke Sevekendron Ka Bhogolik Vishleshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आधार को प्रदान करता है। धरातलीय बनावट, भिटिट्यो जल की उपलब्धता, अनुकूलतम जलवायु एवं अन्य प्राकृतिक संसाधन इन भौतिक कारकों द्वारा प्रदत्त सीमाओं एवं सुविधाओं पर सांस्कृतिक और मानवीय तथ्य अपनी प्रतिक्रिया करना प्रारम्भ करते हैं। प्रशासकीय व्यवस्था, यातायात मार्ग, आर्थिक विकास का स्वरूप ओर अवस्था जैसे मानवीय कारक परस्पर समन्वित ठंग से कभी पूर्वगामी तथा कभी अनुगामी होकर क्रियायें करते हैं। उन सेवाकेन्द्रों पर दो तरह की मानव शवितियोँ प्रभावी होती है। प्रशासकीय मुख्यालय, सुरक्षाकेन्द्र, किला, महल, क्षेत्रीय राजध्यानियाँ, औद्योगिक आवास स्थल ओर राजनैतिक प्रभाव केन्द्र सभी कृतिम शक्तिर्या के रुप भे ओर भिन्न भिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक ओर धार्मिक क्रिया कलाप स्वतः प्रेरित शक्तियों के रुप में प्रभाव डालते है! रसे स्थान सामान्यतया क्षेत्र के केन्द्र में होकर क्षेत्रीय ` सेवायें प्रदान करते है अस्तु केन्द्र स्थल या सेवाकेन्द्र कहलाते है। ऐसे केन्द्रों का जन्म सम्भवतया मेले के स्थान, साप्ताहिक बाजार, मन्दिर या धर्मिक स्थल, तिराहे [तीन ओर जाने वाला मार्ग तथा चौराहे के रुप में होते है। इन स्थलों की स्थिति का निर्धारण सेवा पूर्ति के परिणाम या मात्रा पास के केन्द्रों की सेवा या क्षमता, आधार धरातल अवस्थिति के कारकों तथा क्षेत्रीय राजनैतिक एवं प्रशासकीय वातावरण से होता है। ऐसे स्थान की स्थिति मध्यवती होनी चाहिये एवं ऐसे स्थान पर स्थिति हाँ जहाँ पर किसी नये केन्द्र को जन्म देने के लिये _ सेवापूर्ति की माँग हो। अर्थात किसी केन्द्र की अनुपस्थिति या दूर स्थिति के कारण आवश्यक पूर्ति प्रभावित नहीं हो। हम जानते है कि वस्तुओं ओर आवश्यकताओं का विनिमय एक प्राथमिक आवश्यकता है। जिसकी पूर्ति के लिये सेवाकेन्द्र या केन्द्र स्थल का जन्म होता है।। कोई भी क्षेत्र/प्रदेश ऐसा नहीं हो सकता जहाँ की जनसंख्या वैयक्तिक रुप से अपनी प्राथमिक, द्वितीय और तृतीयक आवश्कताओं के लिये अत्मनिर्भर एवं स्वतंत्र द हो। अतएव वस्तुओं एवं सेवाओं के परस्पर विनिमय का क्रम प्रारम्भ होना निश्चित हो जाता है। জিষ हेतु एक बहुगम्य सेवाकेन्द्र की आवश्यकता होती है। मध्यवती संगम स्थल की उत्पत्ति स्थानीय बाजार के रुप में इसी प्रकार से होती है। क्रिस्टालर ।° के अनुसार एक बडे प्रदेश में जहाँ सेवा केन्द्र पूर्व में ही कार्य कर रहे है। नवीन केन्द्र उन्हीं मध्यवर्ती बिन्दुज पर जन्म ` ले सकते हैं। जो वर्तमान केन्द्रों से काफी दूर सेवापूर्ति की प्रभावकारी सीमा के बाहर स्थित वि




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