भजन संग्रह | Bhajan Sangrah
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुस्ताई तुलसीवासजी ५
(४)
राग विराव
ते नर नरकरूप जीवत जग,
भवभश्चन-पद-विभुल अभागी ।
निसिबासर रुचि पापथसुचि मन,
खल मति मलिन निगम-पथ त्यागी ॥ १॥
नहिं सतसङ्, मजन नदिं हरिको,
स्वनन् रामकथा अनुरागी |
सुत-वित.दार-मधन.ममता-निसिः
सोचत भतिन कबहु मति जागी ॥२॥
तुरसिदास हरिनाम-सुधा तजि,
सठ,हृठि पियत बिषय-बिप माँगी ।
सूकर-स्वान-सुगाल-सरिस जन,
जनमत जगत जननि-दुख लागी ॥३॥
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