जवानों | Jawano

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Jawano by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1३३ बुराई-मलांई के आँकड़े -दुःख बाहर कही नहीं है हमारे सिवा हमको करो दूसरा न खुली कर सकता हैं, न दुखी ! समझने के लिए यो मान लीजिए, कि हमारे अन्दर दो बंक्स रखे हुए है। एक, सुख का, दूसरा दुश्ख का। 'न मालूम क्यो, कुछ लोगो को दुःख का वक्स खुला रखने की आदत पड गई है। कम ही लोग हैं, जो सुख का बक्‍स खुला रखते है। दुःख का बक्स खुला रखते-रखते हम यह समभने लग गणए है कि सुख का অন हमारे पास है ही नही, ओर फिर औरो के बतलाने पर यह नही मानते कि हमारे अन्दर सुख का बक्स भी मौजूद है ओर यह कि हम अपने-आप सुखी भी हो सकते है । बहुत सुननि-सममाने पर जव हमको औरो की बात माननी पडती है तब हम दूसरा वक्स खोलने की कोशिश करते हैं ओर एकाध बार इसे खोलने मे सफल भी हो जाते है! तव भीं श्रपनी आदत से मजबूर फिर उसको वन्द कर देते हैं और अपना दुःख का बक्स फिर खोल बैठते हैं। अभ्यासवश इसे बन्द करने की याद ही नही रहती और यो दुःख या कम-युख श्रौर व्यादा-दुः्ल के चक्कर में पडकर अपनी ९ की चाल को विलकुल बन्द कर देते है, या बहुत मन्द कर देते हं | सुख-दु्ल बाहर न होते हुए भी इतनी बात जरूर है कि बाहरी




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