सिरहाने मीर के | Sirhane Meer Ke

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Sirhane Meer Ke by सुरेश सेठ - Suresh Seth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मौसम बदल रहा है / 15 इसमे पटल हमने अपन शहर म करई युखार तेजी ये साथ फलते हुए देसे थे, पर जस-जसे वालादाजारिया की चौरे उची हती चली गयी, हमार शहर मे रखा फीवर भी तेजी के साथ पैला लगा। बहुत स्री विस्तृत औरतों दायटे चार्य की तघाश म इधर उधर भटकती हुई पायी गयी । एस समय म लददून चल निवले। उह रापत में देव दशन हुए, भौर उहनि दूसर ही दिन नगर म रेखा योगाश्रर्मा क्री स्थापना कर दा । मिलावट वा जमाना है । इनवी प्रेरणा भी भला इसस অভুনী पसे रहती ? হল পাশা ম হাজঘৃহ का यागा, जेन फॉण्डा वी उछलक्द और रेखा वा बीस कला घटा हुआ वजा जँस ठोस आधार वन गया। लद॒त ने बुछ इस तेजी स यह मिक्सयर नगरवापिया यो पिलाया वि उनवे आधम मे भारी कमर वाला की भीड लग गयी । उनदे आश्रम म॑ दिन रात बसरत-संगीत के कैसट गूजन लगे, और इच्छुक वे 'हुआ-हुआ' स्वर आवाश को गुंजा दत | पचतच्र की कहानिया मे हुआ हुआ का स्वर सियार मामा से जुडता है । हम सियार पक्डन लहन वे आश्रम मे गय ता पता चला वि आजकल यह वजन घटाओ अभियान म कसरत व्यस्त लोगा वी राष्ट्र ध्वनि हू। लदन ने हम ता अपन आश्रम से निकाल दिया, पर पिर भी यह बतान। न भूते कि यह ध्वनि आजकल उहं बहुत मधुर लगती है, क्याकि देखत ही- देखत इसकी बदीलत उसका खस्ता मबान आलीशान हो गया है, और दरवाजे पर हाथी तो नही हा, एक गाडी जरूर झूलन लगी है। पर भजव खुदा वा! अब हमने यह क्या सुना वि लहन कुछ दिनो वे लिए अपना आश्रम बद कर रह हू। और इन जाड़ें बे दिनो म॑ भी वसन्‍्त की तलाश म शिमला जा रहे हैं। अब आप हमारा स्वभाव ता जानते ही हैं। एसी खबर मिले और हम सुराग लगाने वे लिए जेम्स बाड न हो जाए, एसा कभी हा सकता है ? हम उनके आश्रम मे पहुचे तो पाया, पि लद्न बहुत चिन्ता मं थे और वाजू खात हुए बडी गम्भीरता के साथ डायट चाट वा पठन कर रह थे । “अच्छा भला काम छोडकर इस मौसम म॑ शिमला दया जा रहे हए ? हमने लटन से पूषा । না करू । लोगा को वजन घटाना सिखारे ˆ ५९ +




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