मध्यकालीन इतिहास की संस्थाएँ | Madhya Kalin Itihas Ki Sansthayein

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Madhya Kalin Itihas Ki Sansthayein by विजेन्द्रकुमार संघी - Vijendrakumar Sanghi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मध्यकाल भें राजसत्ता का स्वरुप र नासिस्द्ीन की निस्सवान मृत्यु पर उसके ससुर बलबन ने मम्पूर्ण सत्ता प्र अधिकार वर लिया । एक प्रतुभवी सैनिक व कुशल प्रशासनिक होने दे नाते उसने प्रधानमन्त्री-काल में पायी शक्ति तथा प्रभाव को इस प्रवार से गठित किया था कि इछ मधय 'राजछत्ता को উট যি कोई कठिनाई प्रनुमद न्‌ इद ५ उसने यह्‌ अनुभव किया था कि वर्गर सफ्ल नेतृत्व के तुबी अ्मीरों को सगठित रखना सम्भव नहीं है। इसके प्रतिरिक्त मगोलो की बढती शक्ति पर सफवता से अकुश लगाने के लिये ग्रावश्यक था कि राजमत्ता का स्वामी एक ऐसा व्यक्ति हो जिसको सम्पूर्ण प्रशासन व बैधिक प्रधिकार प्राप्त हो । बलवन के लिये यह कार्य सरल नहीं था क्योकि एक श्रोर तो सुत्तान की प्रतिष्ठा लुप्त प्राय थी प्रोर दवुस्तरी झ्लोर तुर्की अमीरा की शक्ति काफी वढ़ गयी थी । बलवन के लिये ग्रावश्यक था कि वह प्रमीरो बी वढी हुई शक्ति पर प्रकुश लगाये और उनमे राजस्त्ता के प्रति सम्मान श्रौर भय वी भावना जाग्रत बर भ्रन्यधा यह सम्भव था कि प्रमीर दूसरें शासकों की तरह उप्त भी पगु कर केबल शाम मात्र के शासकस्य में उससे व्यवहार करें। इसीलिये प्रा> हवीवुल्ला न लिखा है कि “इल्तुतमिश ने मस्था (दिल्ली सल्तनत प्रर्थाव्‌ सुल्तान का पद)की रू रेखा का वेबल निर्माण ही विया या। उसको पुनर्जोवित करन झौर उसे उमकी स्थिति की पुणंता तक पहुँचान का कार्य बलवन के लिय छोड दिया गया था 1 बलबन दिल्‍ली का पहला सुल्तान था जिसने सुल्तान के पद श्रौर अ्धिवार वे बार में भौर अप्रत्यक्ष रूप से राजसत्ता के बारे मे विचार प्रक्ट क्यि | प्रो के ए. निजामी के ब्दा मे यह्‌ सन्तान के सम्बान से वृद्धि करने तथा अन्य अमीरो से बचने के लिय श्रावश्यक या १र-तु इसका एक कारण उसकी हीनता की भावना भी थी जिसके कारण वह भ्रपने विचारो को निरन्तर व्यक्त करके ग्रपन भ्रमीरों को यह विश्वास दिलाना चाहता था कि वह किमी हत्यारे के छुरे भ्रथवा जहर के प्याले के कारए। सुत्तान नही बना है भपितु इश्वर की इच्छा के कारण ही यह पद प्राप्त कर पाया है 1/! वलबन वे राजसत्ता में सिद्धान्त को दो प्रमुख विशेषतायें थीं। प्रथम वह सुल्तान के प८ को ईश्वर द्वारा प्रदान क्या हुप्रा मानता था तथा दूसरे सुल्तान वा निरवुश होना वह भ्रावश्यक सममतरा था। उसके प्रनुमार “सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर या प्रतिनिधि है झ्रोर पेंगम्वर के बाद वही उसका प्रतिनिधित्व करता है । सुल्तान को काय करने की प्रेरणा ईश्वर-दत्त है. इसलिये जन-माधारण को उसके कार्यों की झ्रानोचना का बोई झ्रधिकार नही है! एक बार पपने पत्र ब॒ुगरा खा को सम्बोधित करत हुए उसने कहा था कि “मुल्तात का पद निरकुशता का जीवित प्रतीक है ।




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