नई कहानी : प्रकृति और पाठ | Nayi Kahani Prakrati Aur Paath

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Nayi Kahani Prakrati Aur Paath by श्री सुरेन्द्र -Shri Surendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह पुस्तक और इसके बारे मे १४ घम-परायण पाठक औ्रौर नीतिधर्मा समीक्षक को यहा कुछ पहानियो को लेकर प्रापत्ति हो सकती है श्लौर उनके कोश से यह श्रापत्ति कदाचित्‌ सही भो है लेकिन वे जिन बटखरा से- वे बटखरे गजरे जमाने के नियमन म तो किसी कदर सहायक हुए थे--नई कहानी को तोल बरना चाहते है उनकी मेरे यहाँ कोई प्रहमियत नहीं है, इसलिए कि इल्लोल झश्लीत के फीते साहित्येतर हैं साहित्य का सत्य ठीक' वही नही होता, ज्यादा सही होगा यह कहना कि ठीक उस्ती तरह नहीं होता जिस तरह वह समाज का सत्य होता है यानी साहित्य झौर समाज के सत्य मे प्रक्रियात्मक अन्तर है । सम्भावनाएँ लिए हुए नये जोवन बोध के समानान्तर तीन दजैत से भी अधिक प्रतिष्ठित और प्रतिष्ठित होती हुई प्रतिभाएँ ग्राज कथा-लेखन कर रहो हैं । स्वाभाविक है कि बुछ को मुझे प्रस्तुत पुस्तक को भौर बडा आकार न दे पाने वो मजबूरी में छोड देना पडा है--इसमे उनकी भ्रवमानना जसा कुछ भी नही हं--भ्रौर उतवे' लिए म॑ एक ग्रलग पुस्तक वी बात सोचता हूँ, अलग पुस्तक बी मतलब इस पुस्तक की दूसरी जिल्द षी पाठ प्रकृति को खास भ्रायाम देने वालो कोई कहानी, हो सक्ता है कि यहु ली जाने से रह गई हो, गो इस कोण से मने पूरी सतकंता बरतनी चाही है फिर मेरी अपनी सीमाएं तो हैं ही । पिछले दिनो तक हिन्दी “नई कहानी पर बहस गुवाहिसे या भ्रायोजित गोष्ठियो में व पत्र-पत्रिकाप्रो के: स्तम्भ और हाशिया पर चर्चा-परिचर्चा के दौरान एक बात धरावर खयाल को आँसतो रही कि चर्चा “नई कहानी पर शुर्ट तो होती है लेकिन अपनी शुरुआत के तुरात बाद वह या तो प्चिचमी फहानिया कै सदम श्रौर पर्चिमी समीक्षकों के उद्धरणो या नाम गएाना वी होड मे फिसल कर खो जाती है या फिर नए कथाकार वी किसी एक कहानी को लेकर उस पर समीक्षक मित्र निता-त विरोधी मतगो में पढे निकालते रहते हैं भौर तव हिंदी “नई कथा की समीक्षा साहित्य वी चीज न रहकर पहलवानो के जोर करने की जगह का मतलब देने लगती है पटल) स्थिति मे समोशक पौ सम हिन्दी “नई कहानी वी पहचान से उतनी जुड़ी हुई नहो रहो है जितनी कि इस उत्साह से वि श्रधिक्‌ से श्रधिक विदेशी म्रयाश्रीर सेखको के नाम गिनावर वह साहित्य के दिद्यार्थी को भ्रातक्ति घर सकें भर भ्रातवित নল ঘা यह चस्का हमारे कया समीक्षका के मुजबत को जिन रास्ता पर ले गया है, व रास्ते हिन्दी कहानी वी प्रकुृति-पहचान वी तरफ बहुत कम लौटकर प्ाते हैं विदेशों समीक्षय भौर विदगी बहानिया को गिनान घी लत ने यहाँ तक पशन वा रषु पय्डा है कि दिना भारतीय कथा लेखन के परिवेश और जिदगी मौ प्रकृति का खयाल विए विदेशी समीक्षा थे मुहावरे को उन पर भरपूर स्तेमाल पिया गया है ऐसे घथा समीक्षपों बे लिए प्रक्सर क्‍या समीक्षा मे गम्य सदम -हिदी नई वदानी~ महज




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