हस्तलिखित हिंदी ग्रंथों का त्रयोदश त्रैवार्षिक विवरण | Hasthlikhit Hindi Grantho Ka Trayodash Trevarshik Vivran

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Hasthlikhit Hindi Grantho Ka Trayodash Trevarshik Vivran by हीरालाल -Heeralal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५) समझता अहिए | क्वमी सुप्रौड़ स्पक्तियों की लाशु रचमा है जिसमें बे वपावसर धपती क्पनासक्ति का प्रदर्शन समाज को ध्राइचर्य अक्रिस करमे के लिपे बद्दी उत्सुअता से करत॑ ह। इस काश पपढ़ाएँ के सामास्यदा दो स॑प्रदाप ई--( १ ) करेंगी कौर ( २) तर । इसमें पहशय शाम सीरिणि ६ भीर दूसरा সুতি । अतः खौ और पुरुष লা দূক্গ হৃশং को शीचा दिखाने के छिप गइरी হীছু ছলাযাতি ई) जण इनके कंग पादोछमी गस जाश म भख को भाँति सहपोग कश्ने समते हैं तब कभी कसी तो यह युगे की का का सा रूप घारण कर संसी है | छावीबाओं का रब रातमा प्रचार नई रह गपा दै जितना पहछे कमी था | किसी राबतीबाम की अबस्पा उर्पों म्पों अड़ती अहती है, प्यों रपों इसमें सकि भावना का बिउ्ास भी होता अछता है । बह रेड के रूस में कपमे उपम्यद्रब को बिद्वेप महत्व देश के फिप्‌ उसका माम ऋषिक से अधिक जितनी बार लपनी स्लुतियों में रूप কলা & কান का प्रपतम करता है। पेसी रचा के छिए द्वितीय परिषिष्टमं संरया ९१ (सी ) को शैखिय्‌ । पक कहर हिंदू के छिप ঘুটী অন্যের प्र बत, बिनु पामि गीरा बने छूट मिस जाने से साजुओं को पेसे पर्षो के छिप प्रोत्पाइल मिरू गपा है। इसके परि णाम स्वशप पट्टुत सा कूपा करकरट भद्रर॒प एकप्र हो गया हैं, फिर भी इसमें कुछ बास्तबिक छाम मी हुआ इ । कुछ साअ्शो की रचमार भी २त्तमकोटि की भागी जाती ६। एिंदी का सर्वोक्त्ष्ट कवि एक साजु द्वी था। इसमान खोज में बास्तयिक महरद की भी कुछ राचमाई उपण्म्प हरं र शिश्ईू प्रघम पथ द्वितीय परिशिर्धे में दुख जा ক্ষত ই! অহী ঘা पर ही प्लोइ दता हूं &ि छाप उस्दें स्दत' पड़े भर अपने समामुकूझ षषे भष्ठेषुरे क्य निर्जय कर क्योंडि मेर संत करन कर अर्थ होगा स्वर्तत्र शिमस पर अनाबइपक प्रह्यार । ५ छोन्न की मुछ उल्लेश्ननीय याते - बर्तमान खोज में मूल गोसाई चरित्र भामक एक बड्डुत हो मदत्यपूण भ्र व मिष्ठा हैं झिपन श्री शुरुसीबास जी के जवन अरित्र से संपड अनेड़ पर॑परित चारणाओों में क्राॉंडिकारी परिबर्तन कर दिया है । डलड़ रप्पु सं्ंधी दोडा 'संवत्‌ पोरइ से নী আলী गंग के तीर । भ्रायग शुद्धा सप्तरी सुरूसी शम्पा धरीर | আ জের प्रमासित हो गया हे | इस धंध मै यद सिज कर दिया है हि श्री शुछसीवास डी की रप्यु “आावण हपामा तीज पति शक्रयोत्‌ शतियार सावम बदी ३ का हुईं, सादम হ্যা ও জী गएीं जो उन्ही जस्मठिपि है | शासास्पवास कृत हुरूसी अरित' क॑ भी दो इप्सरेय मिट जिग्य समीक्षास्मफ र्प्वपतण ওল सट्टाइणि के जीवन चरित्र की प्रामाणिश्सा के হি জী অক नही टुरा है ! शानप्पाना शबाव लण्युर टीम में 'मदसाष्टफ' शासक आए जे गारी पर्पो कय एक संप्रद शाद আ লা কল कापण्प माना जाता है | इसमें हिंद्ी-संप्हत की ফন এসি লন थे संपोडित की गई है । बतमान বীজ में एक हिंदू कदि झदघ बिद्दारी भी मिस ईं जिस्होंने इमी शरह अदनी रचना में कर्म से हिंदी क्रीर आारमसी रुप पंकियोँ रखी हैं। अस, “पिता दिल चेसु करार रही घट, ता बिरही निष आच सपाव। গ্রিলে ই ল दुढदियां मन में पर शाट मुडि मपास्तो याष । शष्टीम भपने मदहनाध्ट६ का आरंभ খুলি £- মলি मम निनाम्तम्‌ कषाय ছি আনু আহা | शम घन सप सेरा मान ले তৌল লতা |” एड बार




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