गृहिणी - कर्त्तव्य | Grihini Kartavya
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुन्शी नवजादिकलाल श्रीवास्तव - Munshi Navjadiclal Srivastav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4৮৮1০
बको अधिष्ठातरों देवो है। नारोचो ग्टहको सुन्दर, साफ़
सुथरा आर सुखझद्धलापूर्ण अथवा दुर्गम्धपूर्ण कदय्य-वासस्थान
खना सकती है। समाजमें स्त्रियां पूर्ण शल्िकप्मे विराज
হী हैं और वहां वे जो कुछ कर सकतो हैं, वह
परुषोंसे नहों छो मकता। मससाजमें स्तिर्योके कर्तव्य
कर्मों को सोमा हो नहीं है। मनुष्यकी ममष्टिको हो जाति
कहते हैं और नारियां डी उन मनुष्योंको मातायें हैं, स॒तरां
बची गिक्षाटात्रो भी हैं। प्रक्तति रूपमे भ्वियां द्धो ममाजको
पैदा करतीं, पालतों श्रौर नाश करतो हे; पसप नरो ।
ऋश्यक रमणो अपने खोद, दया, श्रतियिचेवा तथः परो-
पका द्वारा ममम्त॒ सानव-समाजका काय कर सकती
लिै। मनुप्यको कोसल व्र्तिर्योपर उसका पूरा अधिकार
ष्ट। नारो जातिके बलका यह्द संक्षिप्त विवरण उसके
विशाल कम्मल्षेत्र भौर जोवनके महान् उद्दे श्यका परिचय दे
रहा है ।” #
ग्टइस्थाय्रमर्में स्त्रियों छी का एकसाव आधिपव्य है-ग्यह-
रूप दाज्यकोी सच्दारानी ग्टहिण्गों छो है। किन्तु बढे डी
परदितापका विषय है, कि उचित शिक्षाके 'भभाषके कारण
स्त्रियां अपने उचित अधिकारसे वच्चिता हो रहो हैं ; सुतरां
राज्यच्युत छोकर छयाके माय पटटनित ष्टो रदो इ ।
डुर्भाग्यवय आजकल छस लोग सामाजिक कुप्रयाभ्रोदि
$ ५ भ्युपमातः चेत १२१९॥
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