भारतीय नेताओं की हिंदी सेवा | Bhartiya Netaon Ki Hindi Seva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
471
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२१८८
পবা .जिनके प्रभाव से विसी भी भाषा के प्रवाह की को्
त मिलती स्वाभाविक है। इसलिए आर्य-परिवार की वंगछा, गुजराती, मराठी
आदिऔर दरविइ-परिवार की तमिछ, तेलुगु, कन्नढ़ और मछयाऊम आदि भाषाएं
इस काछ में उन्नत हो नही हुईं वरन पूर्णेरूप से प्रौढ़ बनीं 1 इस प्रगति की दृष्टि से
हिल््दी और बन्य भाषाओं में समानता है । तो फिर हिन्दी की विशेषता कसा है ?
(३) जहां अन्य भाषाओं के विकास का आधार अधिक्रांश्नतः साहित्यिक
गतिविधि ही है, वहां साधारणतः हिन्दी के विकास के कारण साहित्यिक भौर
साहित्येतर दोनों ही तथ्य है । यद्यपि वंगछा, मराठों आदि में भी आंदोलनों की
चेतना कय स्वर मुसस्ति हआ है, किन्तु हिन्दौ कौ तुरना में उनकी व्यापकता कम
है। कोई भी गतिविधि, चाहे वहूं सामाजिक हो या राजनीतिक, धामिक हो भा_
सांस्कृतिक, ऐसी नहीं जिसने अनायास ही हिन्दी के विकास में हाथ ने बंदाया हो ।
7 ३. बंगला तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाएं ले विशेष के आंदोलनों से हो मुख्यतः अन्य क्षेत्रीय भाषाएं श्षेत्र-विशेष के आंदोलनों से ही मुख्यतः
प्रभावित तया संबंधित हुई हैं, किन्तु हिन्दी की विशेषता यह है कि यह अहिल्दी-
' आपी क्षेत्रों के आन्दोलनों में मो पतपती आई है. क्षेत्रों के आन्दोलनों में भी पनपती आई है! ब्रह्मसमाज का जन्म कलकत्ता
में हुआ और आर्यतमाज की नॉव बम्वई में रखी गई, किन्तु इन दोनों ही संस्याझों
ने हिन्दी मीत्साहन् हो नहीं दिया, अपितु एक स्वर से उसे अखिल भारतीः हिल््दी को प्रात्ताहन हो नहीं दिया, अपित् एक स्वर से उसे अखिल भारतीय
মাথা माना तथा क्रमशः अपने-अपने प्रचार का माध्यम बनाने का असल किया ।
३. कोई भी आन्दोलन इस अवधि में ऐसा नहीं हुआ, जिसके_प्रपेताओं से
उषे राष्टन्पापी रूप देना न चाहा हो और हिन्दी के ब्यापकता से प्रभावित होकर
তক সন্যাঘাঙগ हिन्दी के उपयोप कयी अनिवार्य ने समझा हो । भाभिक तथा सामाजिक
৬ ` आन्दोलनं कै प्रवात जब विशद्ध राजनीतिक आन्दोलन की बारी লা লী आन्दौलनों के परचात जब विश॒द्ध राजनीतिक कान्दोरन् कौ बारे भाई तो महात्मा
ঘাস केकर छोटे-वड समी राष्ट्रीय सेताओं ने आन्दोलन के प्रसाए और सफल
सृधादन के लिए ठ्िन्दों का आवश्यक समझा। के लिए हिन्दो को आवश्यक समता | इसलिए सहज ही परिस्थितियों द्वारा
ओर दूरदर्सी नेताओं के निदर्शन द्वारा हिन्दी पर अखिल मारतीयता की छाप छूग
ग्रई1
४. हिल्दी का बंशानुक््म तथा उसकी परंपरा भाषा-विज्ञान की दृष्टि से
स्तरो दै, पवमन ব্যাস হত আবছা पुष्ट होठी है; घुद्घोत्तर शाल को भाषाओं
रुपा उपदायाओं के उदय कर अस्त को पूरो कहानी यदि लिसी जाय तो उससे
নিহত মু লি লিটা শি: অঘঘি आयेन्यरिवार वो सभी भाषाओं को
पति प्रादीद प्राइतों और अपश्नए्ठ से हुई है, तथापि हिन्दी ही यह भाषा (8
ग्य गमन्तु হয় प्रं समयन्यसय पर् प्रयुव हीनेवाली बोछियों की एकमात्र उत्तरा-
है विकाहियों है। प्रादन छोर मप्यशा्णीन उपस्य् साहित्यिक सांमप्ी इस तथ्य
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