सरोवर की लहरे | Sarovar Ki Lahare

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Sarovar Ki Lahare by द्वारिकाप्रसाद त्रिपाठी - Dwarika Prasad Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ ] | सरोवर की हरहरें किर क्‍या था ! पूरी गली में हंगामा मच गया । अफवाहें उड़ीं और लोग इधर-उधर भागने लगे । उस हंगामे के बीच कद कर जिस बहादुरी के साथ लाखन सिह ने युवती की रक्षा की, वह मेले की चर्चा का विषय बन गया और काहान्तर में _ लाखन सिंह को उसकी उस वीरता के उपलक्ष में राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित किया गया था । ऋ छः >€ >< >< >८ घटना वाली युवती कुशलूपुर के ठाकुर की बेटी थी । वह गाँव वालों के साथ मेला देखने आई थी । उस शाम को लौटने पर जब मेले में हुए हंगामे की चर्चा घर पहुँची तो युवती का भाई मलखान सिंह व्याकुल हो उठा।. उसने यह भी सना कि एक युवक ने उसकी बहन की छाज बचाई है । तब से वह उस यूवक का पता लेने के लिए बेचन रहा करता था । द उस दिन अखबारों में जब उसने पढ़ा कि उस दिन के हंगामे में वीरता दिखाने के लिए लाखन सिंह. नामक युवक को पटना के एक समारोह में शिरोपा भेंट किया गया है, तो वह लाखन सिंह से मिलने के लिए चल पड़ा । जिस समय मरुखानसिह ठाकुर विशेसर सिह को हवेली के सामने पहुंचा, भौचक्का सा रहं गया । विशेसर सिह छोटे-मोटे राजा के समान थे । उनकी हवेली में ड्योढ़ी लगती थी । दीवानखाने में पूरा दरबार बैठता था । जिस समय मलखान सिंह ने दरबार में प्रवेश किया, बीसों भोजपुरिये सरदार बैठे थे। मलखान सिंह ने राम जुहार किया । ठाकुर ने युवक मलखान सिंह के वृषभ कन्धों को देखा । उसकी भोली-भाली आकृति को निहारा तो उनका मन प्रफुल्लित हो उठा । उन्होंने प्रश्न किया-- । “तुम कौन हो बेटा ? ” द . “मैं आरा जिले के कौशलपुर का निवासी चन्द्रवंशी ठाकुर हूँ ।* .. “सोतोतुम्हारी आकृति ही बता रही है।” कहते हुए उन्होंने मलखान सिंह को अपंनी बगल में बंठा लिया । ` उसके आतिथ्य का भार ठाकुर ने अपने युवा पुत्र छाखन सिंह पर কাজল सिहं बहुत ही होनहार युवक था । ऊँची पूरी देह, स्वस्थ डाला




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