दीप जलेगा | Deep Jalega

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Book Image : दीप जलेगा  - Deep Jalega

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुऋते दीप से जलते दीप तक श्रश्क जी का उत्ठादद बढ़ा उन्हों ने दूसरी कविताएं भी वि० भारत में मेजीं । तीसरी कविता नाविक से --चवुर्वेदी जी को इतनी पसंद आयी कि उन्हों ने उसे श्रपने कथनावुसार ८० पा क0007 देते हुए विशाल भारत के सुख पृष्ठ पर छापा । अश्क जी के पास तब श्रपनी पुस्तकों को विशेषकर हिन्दी में छपवाने के साधन न थे । प्रात-प्रदीप उनकी एक प्रशंसका ने छपवा दी थी । हिंदी जगत ने उसका समुचित समादर किया । कोई नया कवि श्रश्क जी कहानी लेखक चाहे पुराने हों पर कवि तो नये ही थे उस से अधिक की श्राशा नहीं रख सकता । प्रात-प्रदीप की सीधी सरल भाषा और ब्नायासता की प्रशंसा सभी पाठकों और श्रालोचकों ने की | स्व० ब्रज मोहन वर्मा ने अपने ७७1३७ के पत्र में सूनी घड़ियों में की प्रशंसा करते हुए लिखा । ्रापकी कविताएँ बहुत साफ़ दोती हैं । उन में वह क्िपता और शस्पषता नहीं दोती जो श्राज कल के बहुतेरे हिन्दी कवियों की ०१०४८ बीमारी बन गयी . है। 4 छपाई पद सुे आपको कविंताश्रों की यह विशेषता बहुत रूचिकर मालूम होती है कि हफ़ीज़ के गीतों की तरह वे गायी भी जा सकती हैं। हिन्दी की कविताओं में यह विशेषता मुश्किल से मिलती हे । एक पूरी फाइल प्रात-प्रदीप को समालोचनाश्रों श्रोर प्रशंसा-पत्रों से भरी पड़ी है । अरशक जी जब तक स्वस्थ रहे अपने पत्रों समा- तेरह




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