साधन-पथ | Sadhan-Path

Sadhan-Path by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चैराग्य হই यह याद रखना चाहिये कि इन चेष्टाओंके होनेमें भी कारण वैराग्य ही है। अपने शरीर-सम्बन्धी क्षुद्र स्वार्थेसि विराग न होता तो ग्रेमका विंकास कभी सम्मव नहीं था। यह सब होनेपर भी उन लछोगोंका সুদ আনি না देशसे यथार्थ ग्रेम सिद्ध नहीं होता, इहलीकिक या पारङोकिक छख, कीतिं या पदगौरवजन्य आत्मघुखाभिखषाका ही ग्रायः इसे प्रधान उद्य रहता है । वास्तवम्‌ हम अपने ही लिये सबसे प्रेम करते हैं | हम अपने शरीरसे भी अपने ही सुखके लिये ग्रेम करते हैं। जब शर्सरसे सुखमें बाधा पहुंचती है, तव उसको भी छोड़ ইলা चाहते हैं | अत्यन्त कष्टजनक रोगसे पीड़ित होने या अपमानित और पददलित होनेपर दररके नाशकी कामना या चेष्टा करना इसी बातको सिद्ध करता है कि हमारा शरीरसे ग्रेम नहीं है प्रम ते प्रेम- की चस्तुमें ही होता है। ग्रेमकी वस्तु है एकमात्र आत्मा। जगत्से भी उसी अबस्थामें असली प्रेम हो सकता है जब कि हम जगतकों अपना आत्मा मान छेते हैं | इसीलिये ब्रहदारण्यक श्रुतिमें कहा है-- “न वा अरे जायाये कामाय जाया प्रिया .भवत्यात्मनस्तु कामाय जाया प्रिया भवति ! न वा अरे पुत्राणीं कामाय पुत्रा प्रिया भवन्त्यात्मनस्तु कामाय पुत्राः प्रिया भवन्ति › । इत्यादि । यही भाव हमारे ग्रति भी और सबका समझना चाहिये। इस- - प्रकारके विचारोंसे व्रिघय-प्रेमका बाघ करनेपर अब एक बात शेष रह जाती है-विषयोकी सत्ताका वाध ।




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