आनन्द संग्रह | Anand Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Anand Sangrah  by सर्वदानंद - Sarvdanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सर्वदानंद - Sarvdanand

Add Infomation AboutSarvdanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
स्वाध्याय ही जीवन है | १७ स्वाध्याय ही जीवन हे । स्वाध्याय से मनुष्य के जीवन में विचित्र परिणाम होता है| मनुष्य जीवन के उदेश्य की पतिं का श्ुख्य साधन यही है । बिना स्वाध्याय कोई भी पुरुष अपने हिताहित की विचेचना ठीक ठीक नहीं कर सकता । जिन पुरुषो की ख्याति अद्यावधि संत्तार में विख्यात हे व जिनका नाम्र अतीव गारव घ प्रतिष्ठा से स्मरण किया जाता है, जिनके जीवनचरित्र का अवलोकन करना साधारणपुरुषों के अन्तःकरण को सचरित्र बनाने का हेतु बन जाता है वे सब महानुभाव स्वाध्यायश्ील थे । प्रचर्‌ स्वाध्याय के प्रताप का ही यह फल हे कि जिन्होंने परमेश्वर रचित पदार्थों की सहायता से ऐसे २ अद्भुत ओर विचित्र शुर्णों का आविष्कार कर दिया कि जिनको स्वाध्यायहीन पुरुष अपने विचार में भी नहीं ला सकते | इसी विषय मं उपनिषदा का वचन है-- '.. खाध्यायान्मा प्रमद्तिज्यम्‌ । अथात्‌ स्वाध्याय से कमी मी प्रमादं { लापरवाही ) न करना चाहिए । इससे मनुष्य के मन में सुधार के अंकुर और चुद्धि में श्रक्षम्ता उत्पन्न होती हैं जिससे मनुष्य उचितानुचित काये को जान कर अनुचित के परित्याग और उचित के ग्रहण में समथे (कामयाब) हो जाता है । परम्परा से एचंभृत सन्मागे का मरदर्शक स्वाध्याय ही है |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now