श्रीअष्टावक्रगीता | Shri Ashtavakrgeeta

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Shri Ashtavakrgeeta  by पंडित श्री पीताम्बर - Pandit Shri Pitambarपीताम्बर - Peetambarविश्वेश्वर - Vishveshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ तृतियावृत्तिकी प्रस्तावना ॥ ९ पक्ष ७ शुरुवारके रोज परमधामर्कू पहुंचे तिनोने मुसुश्चुनपर असुयह करीके इस. आवृत्तिके लिये अथभागका पुनः सं शोधन कियाथा ॥ ५- आधुनिक पाश्चात्यविद्या (सायन्स) के विद्वानग्रंथकारोंनें पदाथ ( मेटर )। अवकाश । प्रकाश | समय | गति ओ ख- गोलआदिकविंप जे स्वतंत्रविचार प्रदर्शित कियेहें। वे वेदांतके अभ्यासीनकूं अबलोक . नीय हें।कारणकी तात यह अखिलसंसार- का अनादिपना । व्यभिचारिपना । असार- पना। ओ कल्पितपना । जो वेदांतमतकूं मान्य है। सो अत्य॑ंतस्फुट होवेहे ॥ आधु- निक पाश्चात्यविद्याके अनेकर्मथनके অন্ব- लोकनसे मेरे मनविंषे विचारका जो स्फुरण




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