श्री श्री चैतन्य चरितावली पञ्चम खण्ड | Shree Shree Chaitanya Charitavali Khand 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९५ )
विराजमान ईं, जहाँ संसारी द्रव्य संग्रह करनेकी इच्छा है, भीकृष्ण उस
खानसे दूर भाग जाते हैं | उस कृपाड क्ृष्णने कह्--“अभी उ॒म्हें और
साधना करनी होगी, साधन करों, मक्तोंका पादोदक पान करो;
श्रीमद्धागवतका श्रवण करो, भक्तोंके चरित्र सुनो, तत्र तुम्हें मेरी उपलब्धि
हो सकेगी [? क्या करता ! किसीको त्ली-पुत्रोका, किसोको धनका, किसीको
तप-पैरग्यका और किसीको विद्याका सहारा होता है, किल्तु यहाँ तो
इममे कोई भी वस्तु अपने पास नहीं है | यदि थोड़ा-बहुत कुछ सहारा
कहिये, विश्वास समझिये उसी गिरिघर गोपालका है। दूसरा कौन इस
उमयभ्रट व्यक्तिको सहारा दे सकता है | उस कृपाड कप्णने अपार
कृपा की | यहाँ छाकर पटक दिया | साइु-सज्ञका सुयोग प्राप्त कराया,
चेतन्य-चरित्र लिखाया, अपना सुयश्ष सुनवाया और गंगामाताका
नित्यपरतिका 'दस्स-परस अर मन पानः प्रदान किया । वे चाहते तो
विपर्योम मौ छाकर पटक देंतें, किन्ठ पे दयामय बड़े ही कपाड हैं।
नि्वलोकी थे स्वयं ही सहायता करते हैं, किन्तु निर्वेछ भी सच्चा और
सरल होना चाहिये, जिसे दूसरेका सहारा ही न हो) यहाँ तो इतनी सचाई
ओर सरलता प्रतीत नहो हेती, पिर मी वे अपनी अंसीम हपा प्रदर्शित
करते है, यह उनकी स्वाभायिक भक्तवत्सल्ता ही है |
इन पाँच महीनोम निरन्तर चैतन्य-वरित्रोंका चिन्तन होता रहा ।
उठते-बैठते, सोते-जागते, नहातें-धोते, खाते-पीते, भजन-ध्यान, पाठ-
पूजा और जप करते सब समय चैतन्य ही साथ बने रहे। मैंने उन्हें शची-
माताकी गोदमें बालकरूपसे देखा और गम्भीर मन्दिस्में रोते हुए भी
उनके दर्शन किये | प्यारे सखाकी तरह छायाकी तरह वे सदा मेरे साथ ही
बने रहे । मैंने उन्हें खेलते देखा, पढ़ते देखा, पढ़ाते देखा; गया जाते '
देखा, आते देखा, रोते-चिछाते देखा, सट्टीततन करते देखा; मावावेशमें
देखा, मक्तोंकी पूजा महण करते देखा, उन्मादी देखा, विक्षितावखाम देखा)
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