आदर्श भ्रातृ प्रेम | Adarsh Bhratr Prem

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीरामका भ्राद-पेम ९ लक्ष्मण वनमें गये | अनेक विद्या सीखकर और राक्षसोंका विनाश कर मुनिके साय दोनों माई जनकपुरमें पहुँचे। घन्ुप भंग हुआ। परझुरामजी आये और कोप करके घन्ुप तोड़नेवालेका नाम- धाम पूछने छगे, श्रीरामने वड़ी नम्नतासे और लक्ष्मणजीने तेजयुक्त वचनोसि उनके ग्रश्नका उत्तर दिया] टक्ष्मणजीके कथनपर परदुरामजीकों व्रडा क्रोध आया, वे उनपर दति पीसने छगे। इसपर श्रोरामने जिस चतुरतासे भाईके कार्यका समर्थनकर श्रातृप्रेमक्ता परिचिय दिया, उस असहके पढ़नेपर हृदय मुग्ध दहो जाता है । तदनन्तर विबाहकी तैयारी इई, परन्तु বাদল বলি विजय प्राप्तकर अकरेठे ही अपना विवाह नहीं करा घ्या) उद्मणजी तो साय ये ही, भरत-श्धघ्रको बुखकर सवका विगाह भी साथ ही करवाया | विवाहके अनन्तर अयोध्या छोटकर चारों भाई प्रेमपूर्वक रहने छगे और अपने आचरणोंसे सबको मोहित करने कगे । छुछ समय वाद লরে-হালুন ললিহ্থাত चछे गये। पीछेसे राजा दद्चरथने मुनि वञिष्टकी आज्ञा और प्रजाकी सम्मतिसे श्रीरमकरे अति शञ्ीत्र राज्यामिपेकका निश्चय किया। चारों ओर मंगढ-बधाइयाँ बेटने ठर्गीं और राज्यामिपेककी तैयारी की जाने ठगी | वशिष्टजीने आकर श्रीरामकों यह हर्प-संवाद सुनाया | राज्याभिषेककी वात सुनकर कौन ग्रसन्न नहीं होता, परन्तु श्रीराम ग्रसन नहीं इए, वे पथात्ताप करते इए कहने खगे अहो | यह




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