आदर्श भ्रातृ प्रेम | Adarsh Bhratr Prem
श्रेणी : निबंध / Essay, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीरामका भ्राद-पेम ९
लक्ष्मण वनमें गये | अनेक विद्या सीखकर और राक्षसोंका विनाश
कर मुनिके साय दोनों माई जनकपुरमें पहुँचे। घन्ुप भंग हुआ।
परझुरामजी आये और कोप करके घन्ुप तोड़नेवालेका नाम-
धाम पूछने छगे, श्रीरामने वड़ी नम्नतासे और लक्ष्मणजीने तेजयुक्त
वचनोसि उनके ग्रश्नका उत्तर दिया] टक्ष्मणजीके कथनपर
परदुरामजीकों व्रडा क्रोध आया, वे उनपर दति पीसने छगे।
इसपर श्रोरामने जिस चतुरतासे भाईके कार्यका समर्थनकर
श्रातृप्रेमक्ता परिचिय दिया, उस असहके पढ़नेपर हृदय मुग्ध दहो
जाता है ।
तदनन्तर विबाहकी तैयारी इई, परन्तु বাদল বলি
विजय प्राप्तकर अकरेठे ही अपना विवाह नहीं करा घ्या)
उद्मणजी तो साय ये ही, भरत-श्धघ्रको बुखकर सवका विगाह
भी साथ ही करवाया |
विवाहके अनन्तर अयोध्या छोटकर चारों भाई प्रेमपूर्वक
रहने छगे और अपने आचरणोंसे सबको मोहित करने कगे ।
छुछ समय वाद লরে-হালুন ললিহ্থাত चछे गये। पीछेसे
राजा दद्चरथने मुनि वञिष्टकी आज्ञा और प्रजाकी सम्मतिसे
श्रीरमकरे अति शञ्ीत्र राज्यामिपेकका निश्चय किया। चारों ओर
मंगढ-बधाइयाँ बेटने ठर्गीं और राज्यामिपेककी तैयारी की जाने
ठगी | वशिष्टजीने आकर श्रीरामकों यह हर्प-संवाद सुनाया |
राज्याभिषेककी वात सुनकर कौन ग्रसन्न नहीं होता, परन्तु श्रीराम
ग्रसन नहीं इए, वे पथात्ताप करते इए कहने खगे अहो | यह
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