हिरौल | Hiraul
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७)
इसमें न मानसिक सुख है ओर न शारीरिक दी ।
दूसरा राजपूत--ऐसी परिस्थिति में राणा जी की दशा विक्तिप्तों की
सी हो गई। चिन्तौड के पूवौधिकारी पूवेनो की याद् जव
उन्हें आदी तो आठ आठ आँसू रोने लगते दिन को
उदासी रहती, रात को नींद न आती। कई बार रात
को मदल की छत पर वैठे चित्तौड के गौरवस्तम्भों को
देखकर रोते रेते सारी की सारी रात वहीं गुजार देते ।
सागरसिह--महाराज, इसके आगे में स्वयं सुनाता ह । अब
मेरी दशा कहने के योग्य हो गई है। रात को में जिधर
ही आँख उठाकर देखता, उधर ही मेरे पूर्वजों वप्पारावल,
राणा संग्रामसिंह ओर सर्गाय महाराणा प्रताप की कोध-
युक्त लाल-लाल आँखें मुझे दिखाई देती । में उसी दम
घबरा कर आंखें वंदकर लेता। एक दिन की घटना है.
में राव को सोया पड़ा था। अकस्मात् एक भीपण नाद
हुआ। मैंने देखा सामने भैरव की भयावह मूर्ति एक
हाथ में खाँडा ओर दूसरे में रुघिराक्त मनुष्यमुड को
पकड़े सेरे ,सामने खड़ी है। मुझे? सम्बोधन कर उसने
कदा--दुषट राजपूताधम, यहां से चला जा ।› उसी समय
मेरी आँख खुल गई। अर्धरात्रि का समय था! शेष
आधी रात मैंने कैसे मानसिक कष्ट में गुजारी, यह में ही
जानता हूँ। प्रातः होते ही में अपने विश्वासी ,इस मित्र
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