भक्ति काव्य में रहस्यवाद | Bhakti Kavya Me Rahasyavad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-सूची प्रथम परिच्छेद रहस्थयाद की परिभाषा १-३० मातव कौ परिवृत्ति केवन मून एत्तियो वी पूर्ति से नही--जिज्ञासा--मातव मे रहस्य-्भाववा वा उदय--सावंब्रालिक, सार्वदेशिक--रहस्यवाद और दर्शन मे अन्तर --भापा की साप्यं, सोमा -समेतात्मषता तथा सस्पष्टता--दिन्य सयोग --अनिवेश्नीयता--रहर्यवाद ब्रा ब्यापक क्षेत्र--दाशंनिर, आयारमास्य एवं मनोवैज्ञानिक-कुछ आान्तियाँ--प्ाहित्य में रहष्गवाद का प्रयोग, आघुनिक-- रहम्यवाद सदिध भावों एवं अथों का व्यजक --का रण, प्रतिपाद्य विषय की महानता एव व्यापकता--रहस्यात्मक प्रत्यक्ष तथा वर्णन वी स्थिति में काल-मेद--तीद् बुद्धि, भावना तथा प्रवत् इच्छा-शवित अपेक्षित--सम्मिलित रूप से ईश्वर का भावनाएत मिलन --मियन, आनन्द रहस्ययाद गा धामिक पक्ष~-वौद्धिक प्रण, दानिक प्क्ष --रहस्पबाद सिद्धान्त नहीं बला--पाश्वात्य और भारतीप विद्वानों द्वारा रहस्पवाद की विविध परिभाषाएँ--निष्वं । द्वितीय पच्च्छिद प्राचीन परग्परा : २१-६ वेद-वेद--बेदो का अपोस्पेयत्द-परतिम त्षान-छपि, मब्रो দ্যা द्रष्ट, रचपिठा नहीं--भूत, भविष्य वर्तमान सव में एक हो सत्ता का साक्षात्तार-प्रहृति के उपकरणों मे एक ही सत्य-सत््व का स्वरूप-दर्शन--काल, नाम, रूपात्मक एक्‍्ता-- सत्‌ का स्वरूप अवेद्य, वर्णनीय, अनिरवंचनीय, रहस्यप्रय 1 उपनिषद्‌ ; रहस्यात्मक भावना का विरसित रूप--अहा-पिद्या-- उपदेश के पात्र पुत्र, पष्य, प्रशान्तचित्त माचामें की आवश्यक्ता--भक्ति--ब्रह्मदिद्या वी रहस्यमयता एवं गोपतीयता--गुरु, श्षिप्प तथा विद्या तोनों हो बरादचर्य-स्वरूप--आत्मा की मद्ता-- शान, वुदि, प्रवचन, वण ते वप्राप्य-पररा तथा मपय विद्या-मत्र भोर दषेन के ज्ञाता तथा रहस्यमय दार निक प्त्यक्षकर्ता मे भेद--विया, सविदा मे भेद-विदा का मामं शरस्य धारा दुव तीण व दृस्तर--योग का विधान--साक्षा- श्कार के मार्ग में अनेक रगो एवं धब्दे का अतीरिद्रिय प्रत्यक्ष--तज्जन्य उद्गार-- नेति-नेति--सत्य का स्वत्प--ज्योतिर्मय पात्र से पिहित--प्रियािगनवत्‌ गन्त,




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