द्रव्य - संग्रह | Dravya-sangrah

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Dravya-sangrah by भुवनेन्द्र - Bhuvanendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम धिकार ३ भावाथ --१ जीवत्व, २ उपयागमयत्व, ই श्नमूतित्व, ४ कर्तृत्व, ५ स्वदेहपरिमाणत्व, ६ भोक्तृत्व, ७ ससारित्व, ८ सिद्धत्व ओर ६ विस्नलसा ऊध्वंगमनत्व थे जीव के ६ अधिकार हे । ? जाीवाधिकार । तिक्काले चद्पाणा इंदियवलमाउ श्राणवाणा य) वराग सा जीवा णिच्णप्रलादु वेदशा जम्म ॥२॥ ३ त्रिकाले चतुःप्राणा इन्द्रिय बले आयु! आनप्राणा: उ। ठप्रवहागात भः जीवः निञ्चयनयतः तु च॑तना यस्य ॥२॥ अन्वयार्थ --(जम्स) जिसके (ववहारा) व्यवहारनय से (तिककाल) भूत, भविष्यत्‌ ओर वलमान काल में (इंदिय) र्य, (चतन) चत्त, (श्राड) श्राय (य) श्रोर (श्राणपाणा) श्वासोच्कुवास य (चदुपाणा) चार प्राण हाते है (दु) मार (शिञ्चयगयदोा) निरुचयनय म जिसके (चेदगा) चनना है (লা) वह (जीवा) जीव टे ॥3॥ भावाध'--४ इन्द्रियों (स्पशन, रसना प्रागा, चक्तु, कशा) ३ बत (मन, वचन, काय), ? आयु ओर ? श्वासोच्छुबास य दस प्रागा जिसके हों वह व्यवहाग्नय* से ज्ञीव है आर जिसके चतना (ज्ञान और दशन) हो वह निशच्रयनय से जीव है। व्यवह्‌गनय श्योर निर्चयनय । “नत्वाथ निश्चया बक्ति, व्यवह्‌।रा जनोदितम्‌ ।'' श्रथान्‌ पदाथ के. असली स्वरूप का + पत्यै क ৮+ স্সগ 1 कानन बाता नय) * |इपक =) नन? _




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