कर्मयोग | Karmyog

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Karmyog by अशिवनी कुमार दत्त - Ashivni Kumar Datt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदश कमभूमि € -नाशवान है वथा इसके संसर्गसे अथवा सेवनसे इहरोकः तथाः 'परकोकमें अमुक फलको प्राप्ति होगी। जबतक वाह इन्द्रियां (कस इन्द्रियां) ओर अन्तःइन्द्रियां (शानेन्द्रियां ) पूर्ण रूपसे खनेक तरहको संकटापन्न विपत्तियोंमें नहीं फंसं जातीं, तव तक ` शप्र द्मादि साधनो प्रा्तिकी चेश्डा नदीं की जा सकती । जवं तक मनुष्य कष्ठमें नहीं पड़ता तबतक उसमें सहनशीलता और স্তন 'नहीं आंसकता। जिस विषयवासनाके केरमें हम पड़े हैं पहले 'उसमें दोष देख लेंगे तमी उसके प्रति हमारे हृदयमें आशंका उत्पन्न होगी । फिर उसके समाधानके द्यि गुर ओर वेदान्त वाक्योकीः आवश्यकता पडगी ! इने उपायोंसे शंकाका निवारण हो जानेस हृदय श्रद्धासे भर जायगौ । ऊब जीव बन्धन बोध करने रूगेगा तभी तो उस बन्धनसे मुक्त होनेकी उसमें प्रबल उत्कण्डा प्रतीत होगी! इस संसारमें हम जितना अधिक जीवन यात्रा करेंगे उतना ही अधिक यह पथ छझुपरिष्छृत होगा। इस यात्रामें पग धग पर श्रम उत्पन्न होगा, पतन होगा पर इसी तरह हम सफलूभी हो सकेंगे । उसी उत्थान और पतनके द्वारा हो सारे श्रमोंका दूरीकरण होगा, सच्चा माग दृष्टिगोचर होने लगेगा ओर हमारा अनुष्ठान साथक होगा। इसो प्रकारकी भावनासे प्रेरित होकर श्रीरवीन्द्रनाथ राक्तुरने श्रीमगवानको रक्ष्य करके कहां थाः-- भगवान्‌ हमारी चेष्टायें हजारों तरह की हैं, ऐसा यत्र फिजिये जिससे आपकी कृपा हमें हर तरहसे ग्राप्त होती रहे | .. इस संखारले मुक्त दोनेके लिये तथा मोक्ष प्राप्त करनेक्रे लिये




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