बारह बादाम | Barah Badaam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ट खोपड़ोके अत्तर 9) १२
कुक |
गया कि इससे बहस करने गयी ? जानती कि यह भेद ले रही है,
तो बात ही न उठाती। अब अगर कभी बात भी छिड़ेगी, तो'
पलट दूगी। जो बात अब कभी हो ही नहीं सकती, उसके लिये
हाय-हाय करना बेकार है। ब्याहकी बात अपने बसकी नहीं
है। माता-पिता जो चाहेंगे, वही होगा । .माता-पिताकी पलन्द
और इच्छाके सामने मेरी पसन्द ओर इच्छाका कोई मूल्य नहीं
हो सकता! इस बारेंमें मेरी सलाह भी कोन पूछेगा? मैं हैं
क्या चीज्ञ ? असर चीज़ तो नसीब है। उसीपर रहना मेरा
धमे है।”
सोचते-सोचते वसुन्धरा बैसुध्र-ली हो गयी । थोड़ी ইহ
बाद वह लस्बी साँस खींचकर उठी। देखा, आसमान बिल्कुल
साफ़ है, दिशाओंमें सन्नाटा छा रहा है, पेड़ मूम रहे है, गंगा
हिलोरे मार रही है, लहरें उठ-उठकर गिर जाती हैं। सोचा,
खिड़कियाँ बन्द् कर दूँ, प्रकृतिकी यह शोभा देखी नहीं जाती ।
` इतने ज्ञोरकी हवा उटी कि घड़ाकेसे आप-हो-आप खिड़कियाँ
बन्द हो गयीं । दीवारपर ख्टकै हुए चिज हिर गये । एक चित्र
यूटकर ज्ञमीनपर गिर पड़ा । शीशा चकनाचूर हो गया । भजसे
आवाज्ञ हुई। चमकीले टुकड़े चारों र बिखर गये | वसुन्धरा
चौक पडो ! फोरन चित्र उठाकर देखा | बडे गौरसे देखा ।
आँखें गड़ाकर देखते-देखते चेहरा सुखं हो आया । एका बार
ज्वालामयी आँखोंसे चित्रकी भोर देखते हुए दाँत पीसकर उसे
फ़्शेपर पटक दिया ।
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