प्रकरण वक्रता का सिद्धांत और कालिदास तथा भवभूति की कृतियों में उसका विवेचन | Prakaran Vakrata Ka Siddhant Aur Kaalidas Tatha Bhavbhooti Ki Kritiyon Mein Uska Vivechan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
347
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुरेश चन्द्र पाण्डे - Suresh Chandra Pande
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काव्यालडक़ार में अनेक प्रसड॒ग़ों में भामह वक़्ता अथवा वक्रोक्ति तत्व की चर्चा करते हैं। एक
स्थान पर उन्टने बड़ी स्पष्टता से कहा है कि वक्रता से परिपूर्ण शब्द ओर अर्थ ही वाणी को रमणीय
बनाने में समर्थ ই।
| इस कथन से यह भी स्पष्ट हो जाता हे कि आचार्यं भामह वक्रता को उभयपक्षीय मानते थे -
शब्द - वक्रता ओर अर्थ-वक्रता । इस प्रकार वक्रोक्ति के सन्दर्भ मे भामह की उदुभावना अत्यन्त
मौलिक, समीक्लात्मक साथ ही साथ व्यापक भी है ।
आचार्य दण्डी काव्यादर्श के लेखक ओर भामह के परवती ই । वह भी अतिशयोक्ति को
ही काव्यसर्वस्व मानते ইউ | अतिशयोक्ति को आचाय दण्डी अलङ्कारो के वैचित्र्य का सर्जक मानते
हैं। “
परन्तु आचार्य दण्डी की यह अतिशयोक्ति भी वक्रोक्ति से भिन्न नहीं हैं । हॉलाकि, दण्डी
भामह की तरह स्पष्ट शब्दों में अतिशयोक्ति और वक्रोक्ति का तादात्म्य नहीं स्थापित करते, परन्तु
वेचित्रयमूलक अलङ्कारो को वह वक्रोक्ति वर्ग में भी रखते हैं । जैसा कि काब्यादर्श के एक
टीकाकार ने स्पष्ट किया है। ৩
एसा प्रतीत होता है कि भामह के साथ प्रतिस्पर्धा होने के कारण ही दण्डी ने अपना
मत-वैभिन्न स्थापित करने के लोभ से शब्दों को तोड़-मरोड़कर प्रयुक्त किया है, परन्तु काव्यादर्श मं
उपलब्ध स्वाभावोक्ति, अतिशयोक्ति और वक्रोक्ति या प्रसडग पढने के अनन्तर यही निष्कर्षं निकलता है
कि आचार्य दण्डी भी भामह के ही समान वक्रोक्ति को काव्य का एकं व्यापक क्त्व मानते है ।
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|- वाचाम वक्रार्थशब्दोक्तिरलडकाराय परिकल्पते ।
- काव्यालडुकार 5/66
2- असावतिशयोक्ति : स्यादलडकारोत्तमायथा
- काव्यादर्श 2/2/4
3~ वक्रोवितिशब्देन उपमादयः संकीर्णपर्यन्ताः अलङ्कारा.
- काव्यादर्श [हृदयडइगमटीका], प0 202
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