कवि उमापति द्विवेदी विरचित परिणातहरण महाकाव्य का साहित्यिक अध्ययन | Kavi Umapati Dwivedi Virchit Parinataharan Mahakavya Ka Sahityik Adhyyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
419
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पविच्छकिता का जो भान है इसका आदि कारण आपकी इच्छा है । | समार
की कृति जन्य मलिनता यमुना को और परमपुर्ष की वेत विभति गगा को
उनके पदाराधिन्द की प्रेमिका सरस्वती एक मँ मिला रही हि । ? नारायण की
मूल प्रकृति त था नारायण की आठ पटरानियों की आठ प्रकृतियाँ के समान कहा
गया है ।
न्याय तिदातों के अनुसार पारिजयातहरण महाकाव्य में कहा गया है
असाध्य মলা के अद्भूत विधान उत्पति, विनाशाली कार्यं दिना कारण नहीं
हो सकते । कारण गुणानुरूप ही कार्य सिद्धि प्रतिद्वि है । किसी भी कार्य,
के कारणो की लघुता या गुस्ता जीव के -चित्तगत बोधका अनुसरण करती है।
वेदात के द्वैतवाद का सिद्वात पारिजातहरण महाकाव्य के तप्तम,
तर्ग में बताया गया है जैसे रज्जु में तर्पज्ञान अमात्मक है वैते ही अद्वितीय ब्रहम
, 6
में सारा টু प्रपंध अमात्मक है 1 ये अन्नमय कप को प्रचुर मात्रा में उत्पन्न
करते हैं । कृष्ण को कायाकी कहा गया है । इस काव्य र्म कुष्ण को निर्लेप
अदत बताया गया ই |
शाप पथा पय व चर्यः प नयः यः प य अवयः च भ सिः तिः मिः पः चकासति सिनः पो ययः स र) पाः पयत सिः सि पः पी तीमः पा तेः पि भतत मात पावनमि নি রিও এডি यति चदनि चं चलि क्विति
पारिजातहरण महाकाव्य - पंचम सर्म - 15
पारिजातहरण महाकाव्य ~ पंचम লর্ম ৮4৪
पारिजातहरण महाकाव्य - षठ মর্ম - 18
पारिजातहरण महाकाव्य - पँचम सर्गं ~ 7
पह्वदद्गयण महाकाव्य - दषम सर्गं 63, 6५
पारिजातहरण महाकाव्य - तप्तम तमं 38
पारिजातहरण महाकाव्य ~ दषम सर्गं - 20
पारिजताहरणं महाण व्य ~ एकादश सर्गं - 82
पारिजताहरण महा काव्य ~ एकादा तर्ग - 87
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