कवि उमापति द्विवेदी विरचित परिणातहरण महाकाव्य का साहित्यिक अध्ययन | Kavi Umapati Dwivedi Virchit Parinataharan Mahakavya Ka Sahityik Adhyyan

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Kavi Umapati Dwivedi Virchit Parinataharan Mahakavya Ka Sahityik Adhyyan by मंजरी वर्मा - Manjari Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8. पविच्छकिता का जो भान है इसका आदि कारण आपकी इच्छा है । | समार की कृति जन्य मलिनता यमुना को और परमपुर्ष की वेत विभति गगा को उनके पदाराधिन्द की प्रेमिका सरस्वती एक मँ मिला रही हि । ? नारायण की मूल प्रकृति त था नारायण की आठ पटरानियों की आठ प्रकृतियाँ के समान कहा गया है । न्याय तिदातों के अनुसार पारिजयातहरण महाकाव्य में कहा गया है असाध्य মলা के अद्भूत विधान उत्पति, विनाशाली कार्यं दिना कारण नहीं हो सकते । कारण गुणानुरूप ही कार्य सिद्धि प्रतिद्वि है । किसी भी कार्य, के कारणो की लघुता या गुस्ता जीव के -चित्तगत बोधका अनुसरण करती है। वेदात के द्वैतवाद का सिद्वात पारिजातहरण महाकाव्य के तप्तम, तर्ग में बताया गया है जैसे रज्जु में तर्पज्ञान अमात्मक है वैते ही अद्वितीय ब्रहम , 6 में सारा টু प्रपंध अमात्मक है 1 ये अन्नमय कप को प्रचुर मात्रा में उत्पन्न करते हैं । कृष्ण को कायाकी कहा गया है । इस काव्य र्म कुष्ण को निर्लेप अदत बताया गया ই | शाप पथा पय व चर्यः प नयः यः प य अवयः च भ सिः तिः मिः पः चकासति सिनः पो ययः स र) पाः पयत सिः सि पः पी तीमः पा तेः पि भतत मात पावनमि নি রিও এডি यति चदनि चं चलि क्विति पारिजातहरण महाकाव्य - पंचम सर्म - 15 पारिजातहरण महाकाव्य ~ पंचम লর্ম ৮4৪ पारिजातहरण महाकाव्य - षठ মর্ম - 18 पारिजातहरण महाकाव्य - पँचम सर्गं ~ 7 पह्वदद्गयण महाकाव्य - दषम सर्गं 63, 6५ पारिजातहरण महाकाव्य - तप्तम तमं 38 पारिजातहरण महाकाव्य ~ दषम सर्गं - 20 पारिजताहरणं महाण व्य ~ एकादश सर्गं - 82 पारिजताहरण महा काव्य ~ एकादा तर्ग - 87 ২০ © = ০১ 0 4 8




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