शोध -प्रबंध पौराणिक देवशास्त्र - एक अध्ययन | Shodh Prabandh Poaranik Devshastra Ek Adhyayan

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Shodh Prabandh Poaranik Devshastra Ek Adhyayan by रेणु त्रिपाठी - Renu Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 वायुपुराण कं अनुसार- पुरा अनति“ अर्थात्‌ प्राचीन कालमें जो जीवित था-यह व्युत्पत्ति होती है । किन्तु पदम पुराण में इससे भिन्न स्थिति चरिलक्षित होती है 'पुरा परम्परां वष्ठि कामयते/” अर्थात्‌ जो प्राचीनता की परम्परा की कामना करता है वह पुराण कहलाता है ब्रह्माण्ड पुराण की इससे भिन्‍न एक तृतीय व्युत्पत्ति है - पुरा एतत्‌ अभूत्‌ ४ সি अर्थात्‌ प्राचीन काल में ऐसा हुआ | इस प्रकार उपयुं क्त समस्त व्युत्पत्ति की मीमांसा करने पर यह स्पष्ठ हो जाता हे कि पुराण का वर्ण्यं विषय प्राचीन काल से ही सम्बद्ध था । प्राचीन ग्रन्थो में पुराण का सम्बन्ध इतिहास से इतना अनस्यूत है कि दोनों सम्मिलित रूप से इतिहास-पुराण संज्ञा से अनेकशः वर्णित हें । इतिहास के अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थों मे उल्लिखित होने परभी लोगों मे यह भ्रान्त धारणा दृढ़ दहै कि भारतीय एतिहासिक परिकल्पना से सर्वथा अपरिचित थे किन्तु यह धारणा निर्मूल तथा अप्रामाणिक है । यास्क के अनुसार ऋग्वेद में ही प्राप्त होते हैं । छान्दोग्यो पनिषद मेँ समत्‌कुमारसे ब्रह्म विद्या सीखने के अवसर पर नारदमुनि ने अपनी अधीत विद्याओं के अन्तर्गत इतिहास पुराण को पंचम्‌वेद५ संज्ञा से अभिहित किया हे, १, पस्मात्‌ पुरा हयनतीदं पुराणं तेन तत्‌ स्म्‌तम्‌| निरूक्तमस्थ यो वेद सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। वायुपु० १८२०३. २. पुरा परम्परां वरिढठ पुराणं तेन तत्‌ स्मृतम्‌ || पद्‌ मपुराण ५८२.८५३ ३. यस्मात्‌ पुरा हयभूच्चैतत्‌ पुराणं तेन स्मृतम्‌| निरूक्तमस्य यो वेद सर्वपापैः प्रमुच्यते | । ब्रह्माण्ड पु० १८१८१७३ ४. ऋग्वेद भवोडध्येमि यजुवेदं सामवेदमथर्वण हास पुराणं पच्चमं वेदानां वेदम्‌ । छान्दोम्प ७१




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