उत्तर प्रदेश में महिलाओं की स्तिथि | Position Of Women In Up

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Position Of Women In Up by रचना पाण्डेय - Rachna Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पति की मृत देह के साथ स्त्री का जलती हुई चिता में प्राण विसर्जन करना सतीः होना कहलाता था। विधवा होने परस्त्री को अपने पति के साथ सती होना पड़ता था। समाज आत्महत्या के इस लोमहर्षक सार्वजनिक समारोह में गौरव से सम्मिलित होता था। यही नहीं सती होने वाली महिला का गुणगान किया जाता था। इसके विवरण भी मिलते हैं कि सती होने के लिए स्त्री पर अत्याचार किये जाते थे। ऐसी घटनाएं हिन्दू स्‍त्री का करुण चित्र तो उपस्थित करती ही हैं, साथ ही यह भी दिखाती हैं कि उसके प्रति किये गये व्यवहार में भारतीयों ने मानवता को भुला दिया था। इस्लाम के भारत में प्रवेश के साथ भारतीय समाज में पर्दा प्रथा का आगमन हुआ जो उन्नीसवीं शताब्दी में अपनी पूर्ण संकुचितता के साथ विद्यमान था। पर्दे को दैहिक पवित्रता या कौमार्य की रक्षा के लिए उचित माना जाता था। पर्दे ने भारतीय नारी को मुख्य धारा से बिल्कुल अलग-थलग कर दिया ओर वह पराधीनता, दीनता, हीनता व कष्टप्रद जीवन जीने को विवश हो गई। हिन्दुओं की अपेक्षा मुसलमानों में परदे की प्रथा का पालन अधिक कठोरता से किया जाता था। निम्न वर्ग की सच्त्रियों के घर के बाहर पुरुषों के साथ काम करने के कारण उनमें पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी, किन्तु उच्च तथा मध्यम वर्ग में यह सम्मान का सूचक मानी जाने लगी थी। इसका प्रभाव मध्यम वर्ग की स्त्रियों के शारीरिक, सामाजिक, मानसिक विकास पर पड़ा। ए. हबीबुल्ला ने लिखा है कि-“पर्दा महिलाओं को घर से बाहर किये जाने वाले कार्यों के लिए असमर्थ बना देता है। घर में आर्थिक रूप से पुरुष पर निर्भर होने की विवशता ओर पुरुष के उत्कृष्ट होने की धारणा स्त्री का कोई निजी व्यक्तित्व विकसित नहीं होने देती।”' 11




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