वस्त्रविज्ञान लेखसंग्रह | Vastra Vigyan Lekh Sangrah

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Vastra Vigyan Lekh Sangrah by प्रभाकर दीवान - Prabhakar Diwan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সি कपास को साफ कर नमी, धूछ आदि न छगे जिस तरह ठि के हिन्व : आदि में-मरकर रखना तथा असे बीच-ब्ीच में फैलाकर धूप देंते रहना भुपयोगी दोगा । भिसपे.सेग्रह कर रखने से ज दोप पैदा.होते है গ্রীন कपास की बहुत कुछ रक्षा हो सकेगी । कपास के रेशों की परिपक्वता और ओुसपर परिस्थिति का असर परिपक्वता का महत्व कपास के रेशों की कीमत आंकते वक्त सकी उवाओ, मुटाय- 'मियत, रंग आदि- गुण देखे जाते हैं | लेकिन जिससे मी ज्यादा महत्व का गुण रेशों की परिपक्वता है। रेशे अगर पूरे पक्के न हों,'वे अधपके या অন্ধ तो कितने ही छंत्रे, मुछायम और चमकीके होने पर 'भी काते की दृष्टि से कम दर्ज के ही गिने-जायेंगे। क्‍यों क्रि अपपके “या कच्चे रेशों से कता हुआ सूत और संस वना कडा कमजोर बनता है जौर जल्दी फट जाता है। साथ ही. कातते समय जैसे रेशों का .सूत बारबार ` दता षै । बुनाओ में भी सृत - हृव्ते रहने से वही' दिक्कत - होती है । ক ইহাঁ জী খানি में भी मुश्किली होती है। कच्चे या अधपके रेशे भे द्वोते हैं, जिसलिये वे अच्छो तरदद रंग सोख नहीं सकते । कच्चे ই से बना हुआ सूत या कपड़ा रंगा जाय. तो.असपर/औैकसा रंग. नहीं चढता, 'अुसम सफेद धब्मे' दिखाओ देते.हैं |. परिपक-रेशे पोछे - होते हैं, अनमें त्वितिस्थापकता और छचीछापन ज्यादा होता है |- वे अधिक आवदार होते हैं।' जिसी कारण वे अच्छी तरह रंग सोख सकते हैं, अुनपर .रुं। जिशेई † खिल्ता है । अधिक लचीके होने के कारण थे मजबूत होते हैं और ज्यान - न्न रया




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