मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में सौंदर्याभिव्यक्ति | Maethilisharan Gupt Ke Kavya Mein Saundaryabhivyakti
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
142 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुप्त काव्य में सौन्दर्या भिव्यकिि
| हो जाता है।
भारतेन्दु जी का हिन्दी साहित्य की रचना प्रारम्भ करना ही नवयुग की चेतना की सूचना
| देता है। भारतेन्दुजी के साथ ही हिन्दी कविता के विषयों और उनके प्रकाशन के ढंग में |
महान क्रांति उपस्थित हुई। “यही कारण है कि हिन्दी का प्रथम उत्थानकाल भारतेन्दुजी के |
| नाम से जाना जाता हे । गुप्तजी के साहित्य के पदार्पण के समय हिन्दी कौ सुप्रसिद्ध पत्रिका
| सरस्वती ' का प्रादुर्भाव हो चुका था। श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका संपादकत्व |
| संभाला | साहित्यिक दृष्टि से इसे द्विवेदी युग की संज्ञा से अभिहित किया गया । द्विवेदीजी |
ने ब्रज भाषा के स्थान पर शुद्ध खड़ी बोली में कविता लिखने का आग्रह किया । भारतेन्ु |
| काल की अपेक्षा इस काल में वर्ण्य विषय में पर्याप्त परिवर्तन हुआ। कविताओं के अन्तर्गत
| राष्ट्, समाज और संस्कृति के प्रेम की भावना उदित हुई। वे प्रत्येक वस्तु में सुधार ओर |
| सुव्यवस्था की ओर अग्रसर हुए। राम-कृष्ण की अलौकिक और अस्वाभाविक कथाओं को |.
लौकिक ओर स्वाभाविक रूप देकर उन्हें मानव जीवन में सर्वथा अनुकूल बना कर काव्य रूप
दिया जाने लगा। इस युग में मानवतावादी दृष्टिकोण अत्यधिक विकसित हुआ। कविजन
` | 'विश्वलंधुत्व ' ओर वसुधैव कुटम्बकम्' से ओतप्रोत होकर अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने लगे। | ¦
। इसके उपरांत आगे चलकर द्विवेदी युगीन स्थूल नीतिपरक वाह्यार्थं निरूपिणी एवं | `
इतिवृत्तात्मक कविता प्रणाली के विरुद्ध प्रतिक्रिया आरम्भ हुई । इसके परिणामस्वरूप एक |
नये युग का प्रारम्भ सन् 1918 में हुआ। जो साहित्य में छायावाद के नाम से प्रसिद्ध है।|
तत्पश्चात सन् 1936 में एक ऐसे जनवादी साहित्य की रचना हिन्दी में आरम्भ हुई, जिससे |
| किसान-मजदूर की प्रतिष्ठा ओर पंजीवाद की भर्त्सना की गई । स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व,
| विश्व- बंधुत्व, मानवता, प्रेम आदि से ओते-प्रोत होकर आर्थिक एवं राजनीतिक क्रांति के
लिए प्रेरित किया गया। इस प्रकार विश्व शति के लिए सर्वहारा वर्गं के संगठन को |
आवश्यक बताया गया। यह धारा हिन्दी काव्य जगत में प्रगतिवाद के नाम से विख्यात दै । |
| इसके पश्चात सन् 1938 में प्रयोगवाद आरम्भ हुआ। इसका सूत्रपात सन् 1943 मेँ
प्रकाशित प्रथम ' तार-सप्तक' से हुआ। इस संबंध में अज्ञेयजी ने लिखा है-' प्रयोगशील |
| कविताओं में नयी शक्तियों या नयी यथार्थताओं का जीवनबोध भी है । उन सत्यो के साथनये |
रागात्मक संबंध भी ओर उसको पाठक या सहृदय तक पहुंचाने अर्थात साधरणीकरण करने |
कीशक्तिभीहै।'* |
| इस युग के साहित्य मे अश्लीलता तथा भदेसपन का आधिक्य रहा । इसके साथ ही शब्द- | `
| शिल्प, रूप-सलज्ना एवं भाव-सौन्दर्य के प्रति विद्रोह किया गया । किन्तु कोई स्वस्थ ओर | `
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