नगरीय परिवेश के महाविद्यालयों की छात्राओ के सामाजिक मूल्य तथा आकांक्षाओ का समाजशास्त्रीय अध्ययन | Nagriy Parivesh Ke Mahavidhyalyaon Ki Chatrao Ke Samajik Mulya Tatha Akanshaon Ka Samajshastriya Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
157 MB
कुल पष्ठ :
203
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीव्र गति से परिवर्तित होते हुये नगरीय परिवेश में नवयुवतियोँ की आकाक्षाओं
तथा मूल्यों का समाजशास्मीय विश्लेषण करना ही वर्तमान अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य है ।
समकालीन भारतीय समाज विशेषरूप से नगरीय समुदाय, जो नवीन मुल्यं की ओर तेजी से आकृष्ट
है जबकि उसके अतीत के मूल्य अभी भी छूटे नहीं है, वस्तुतः दन्द के बीच से गुजर रहा हे 1
परिणामस्वरूप, परम्परा और आधुनिकता के वीच संघर्ष है । यह संघर्ष तथा इसका प्रभाव
भारतीय सामाजिकः जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिलक्षित हो रहा है । इतनी भ्रामक स्थिति में यह
निर्धारण कर पाना बहुत ही कठिन है कि पारम्परिक तथा आधुनिक मुल्यों में कौन सा मूल्य नयी
पीढी पर अधिक प्रभाव डाल रहा है । यों आधुनिकता नवयुवतियों के दृष्टिकोण पर अपनी छाप
छोडती प्रतीत हो रही है तथापि यह भी नहीं कहा जा सकता है कि परम्परायें निष्प्रभावी ही
रही हैं । कहने की आवश्यकता नहीं है कि भावी भारतीय परिवार और समाज का उत्तरदायित्व
` युवा पीढी को वहन करना है । इसलिये युवतियों के मुल्यों और आकांक्षाओं का अध्ययन करना
सर्वथा समीचीन है । इससे यह समझने में सहायता मिल सकेगी कि नगरीय परिवेश में पली
नवयुवतियाँ नवीन मुल्यों को कहाँ तक अगीकृत कर रही
भारतीय संविधान का वास्तविक उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जो 4
समानता, स्वतन्त्रता, बन्धुत्व ओर न्याय पर आधारित हो । संविधान ने जाति तथा अन्य आधारों पर
भेदभावों को समाप्त कर दिया है और इस समय देश की राजनीति में उदारवादी मूल्यों का विकास द
हो रहा है । इन सबसे ऐसा प्रतीत होता है कि अब मनुष्य और मनुष्य के बीच जाति, सम्प्रदाय
धर्म लिंग आदि के आधार पर अन्तर समाप्त हो जायेगा लेकिन भारतीय सामाजिक संरचना के
४४7... निकटतम अध्ययनों से कुछ दिलचस्प तथ्य उभरकर सामने आये हैं
प्रभाव कुछ कम तो हुआ है परन्तु पूर्णतः समाप्त नहीं हुआ हैं
तथा अन्य अनके परिवे्शों में जाति अपनी भूमिका निभाती है, उसे देखकर यह निष्कर्षं निकालनां' । ४; | রর
वस्तस्यति
ए डेमोक्रेटिक इनफारमेशन `
আক कास्ट इन इण्डिया , मिरिकन_परिटिकल सा रिव्यू खण्ड 89 अक 4 ` 3
इट्स् इम्पलीकेशंस, अनुवादक मासं सेन्सवरी नई दिल्ली : विकास प्लिकेशन्स सव क 19701 11.
उपयुक्त नहीं होगा कि जति तया अन्य परम्परायें अब समाप्त हो गयी है
|. लायड आई खरूडोल्फ - শ্হু मार्डनटी आफ द्रेडीशनः
(दिसम्बर 965), पृष्ठ 975-989, लुहस इमा, होमो हायर् किर्कृस द कास्ट सिट
` जति ओर परम्परां का `
जिस प्रकार देश के चुनावों |
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