निधानगिरि कृत भक्ति मनोहर महाकाव्य का शोध परक मूल्यांकन | Nidhanigiri Krit Bhakti Manohar Mahakavya Ka Shodh Parak Mulyankan
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
190 MB
कुल पष्ठ :
352
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कृति दर्शन का सूत्रपात महाकवि निधानगिरि के द्वारा संभव हुआ वह साहित्य, संस्कृति और
इतिहास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ऐसे सृष्टा और दृष्टा महाकवि ने जिसमें व्यास, वाल्मीकि
और कालिदास को लेकर, तुलसी, सूर और जयदेव की मिली-जुली धाराओं को एक नयी गति
प्रदान की गयी है, उसकी उपलब्धियों से हिन्दी साहित्य को परिचित कराना अनुसंधान का
दायित्व धर्म है।
भक्ति एवं रीति को एक नयी दिशा देकर आधुनिक युग में प्रवर्तन कराने वाले कवियों में
“निधानगिरि” युगदृष्टा और युगसुष्टा दोनों रूपों में समीचीन है। बज, बुन्देली में महाकाव्य रचना
करने वाले वे हिन्दी के प्रथम कवि है! एक समर्थ साहित्यकार के रूप निधान गिरि' ने हिन्दी
प्रबन्ध काव्य को एक नयी दिशा दी। यह सच है कि उनका साहित्य यदि समय से प्रकाश मेँ आ
गया होता तो वे आधुनिक युग के प्रवर्तक कहलाते, फिर धी युग को नया बोध देकर भक्ति एवं `
रीति का नया संस्कार करके कविने युग को नयी दिशारं दी, ऐसे मूल्यों को स्थापिति एवं
प्रतिष्ठित किया, जिससे नयी चेतना का शुभारम्भ हो सका।
निधानगिरि' ने अपने पूर्ववतीं साहित्यकारों से जो विभक्त भक्तिधाराएं पायी थीं, उनके
परस्पर विरोध को मिटाकर उन्होने सदभावना का संचार किया हे! राम, कृष्ण एवं शैव-शक्त
मर्तो, मतान्तरं को एक एसी भाव भूमि प्रदान की, जिससे भक्ति का एकाकार हो उठा ओर ।
विभिन्न खचिर्यो के बीच एक समन्वय उत्पन्न ह्ये सका! कवि को उत्तराधिकार मेँ जो रीतिकाल से `
मिला था उसे भी निधानगिरि ने बदला! कामुकता के स्थान पर शुद्ध सात्विक भावो को प्रतिष्ठित
करके कवि ने रीतिकालीन उद्याम वासना को खूपान्तरित कर दिया।
भविति काव्य की भावराशि को ओर रीतिकाल की कला माधुरी को लेकर क्वि ने
आधुनिक राष्ट्रीय चेतना के भावों को बुन्देली, बृज, अवधी के संगम से सामासिकता को बढाया
है, वह सुजन परम्परा का प्रारम्भिक चरण है। शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन को संस्कृति का अक्षय `
दान करने वाले कवि नै सारस्वत नैतिक मूर््यो की स्थापना के लिए भागीरथ प्रयत्न किया,
बन्देलखण्ड की गौरव भूमि जिसमें तुलसी और चंद के गीत गाए जाते हैं, जिसमें केशव _
. और पदूमाकर के छन्द गूँजते रहते हैं, जहाँ केशव का पएण्टत्य,राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त की `
रतभारती' गर्जती है, एसी धरती को धन्य करने का अवसर 'निधान-गिरि'को प्राप्त हुआ।
र काला अकाकाउ था *परपपक 55 हलक जज डिद 22 भव धवक रह चं रत ञ 51
৭
४ ইন নিন না বকনী,
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