अनुसूचित जातियों के वृद्धजनों की समस्याओं का समाज शास्त्रीय अध्ययन | Anusuchit Jatieo Ke Vredhjano Ki Samsayeo Ka Samajsastri Adhyayan

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Anusuchit Jatieo Ke Vredhjano Ki Samsayeo Ka Samajsastri Adhyayan  by रीता कुशवाहा - Rita Kushwaha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 जीवन के प्रति रूचि को स्वोते जाते हैं सम्प्रति वे शीघ्र ही विघटित व दबा हुआ महसूस करने लगते हैं। उम्र (५८ वर्ष ) वृद्धावस्था को निर्घारित करने वाले तत्व : - शारीरिक स्थिति / परिवर्तन चिकित्सीय जाँच / अक्षम्‌ नि:सन्देह, भारत में शिक्षए एवं स्वास्थ्य की दशाओं के प्ललस्व॒रूप वृद्ध व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हुई है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से वृद्धावस्था की एक प्रमुख समस्या समाज के साथ उनव्हे सही समायोजन न करने की है। समाज कहे विविध क्षेत्रों के 'आजुभविक अध्ययनों के द्वारा यह देखा गया है कि जो मनुष्य वृद्धावस्था कही वास्तविकता को स्वीकार कर लेते हैं दे समाज में सफलतापूर्दक संयोजन कर लेते हैं अधिकांश वृद्ध स्वास्थ्य के ग्रिने, नौकरी के हट जाने और आमदनी मँ कमी अने अदि के कारण कणी मानसिक तनाव महसूस करने लगते हैं। जिनके कारण इन व्यक्तियों में निराशा, कुंठा, नकारात्मक व्यवहार तथा उत्तेजना आदि की भावनाएं पनप जाती हैं जो समाज क्ठे साथ सही समायोजन करने में बाधक होती हैं।' शारीरिक दृष्टि में वृद्धों को दो भागों अर्थात्‌ सक्षम वृद्ध व अक्षम वृद्धों में विभाजित किया जा सकता है। यह सही है कि वृद्धावस्था में अनेक शारीरिक परिवर्तनों জু कारण व्यवित्‌ अनेक रोगों तथा बीमारियों का शिकार हो जाता है| इन रोगों के फलस्वरूप व्यक्ति अक्षम वृद्धों व्ही ओणी में आ जाता है। ऐसे व्यक्तियों को सही उपचार क दारा सक्षम्‌ वृद्धों की श्रेणी में लाया जा सकता है।' पूर्वी एवं पश्चिमी देशों में वृद्धों द वृद्धावस्था की समस्याएं, उनके विभिन्‍न दार्शनिक सिद्धान्तों के कारण भिन्न-भिन्न हैं। पश्चिमी समाज युवजन केन्द्रित, व्यक्तितवादी और मभौतिकतावादी है। वहाँ माता-पिता तथा सनन्‍्तान्‌ के मध्य सम्बन्ध... भावनात्मक आधार पर आधारित नहीं होतें। जबकि पूर्वी देशों अर्थात्‌ भारत में माता- पिता ` से सन्तान्‌ के सम्बन्ध भावनात्मक अधिक होते हैं। भारतीय जीवन में व्यदित्‌ का परिवार से बिछुडना कभी नहीं होता। माता-पिता, बच्चों के पालन्‌- पोषण एवं उनकी सफलता को




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