बैगा आदिवासियों की आर्थिक संरचना का विश्लेषणात्मकअध्ययन | Bega Aadivasiyon Ki Aarthik Sanrachna Ka Vishleshnatmak Adhyyan

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Bega Aadivasiyon Ki Aarthik Sanrachna Ka Vishleshnatmak Adhyyan by देवेन्द्र कुमार खरे - Devendra Kumar Khare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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61706110810) 00101001) ০1169, 01109৬/ 0০08080101081 |738०1०८5 थातव (1091 17010011800 00015101 0116079515535 29 17610015 018 91091] 900 95101-7801019] 0101071 | समाजशास्त्रियों एवं मानवशास्त्रियों ने अपने-अपने संदर्भ में जनजातियों को परिभाषित किया हे । विभिन्नता होते हुए भी सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि ये समूह कृषि क्षेत्र में नये हैं। इन्हें खेती करते हुए 100 वर्ष से अधिक नहीं हुए हैं। जो कुछ खेती वे जानते हैं, हिन्दू जातियों से सीखी हैं। इनमें गरीबी हैं, अशिक्षा है और सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जंगलों और पहाड़ों में रहकर उन्होने पृथक्करण को अपनी जीवन पद्धति समञ्च लिया हे। जनजातियों की इन सभी विशेषताओं में आज बड़ा अन्तर आ गया है। परिवर्तन होते हुए भी इन्हें सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से आरक्षण देने की आवश्यकता है। इसी कारण संविधान ने इन जनजातियों की विविधताओं को समेट कर इन्हें ऐसी परिभाषा में बांधा है, जिसके अनुसार इसका विधिवत विकास हो सके। संविधान छाश दी गयी परिभाषा देखा जाये तो हमारे देश में “आदिवासी” या “जनजाति” पद की कोई पृथक अवधारणा विकसित नहीं हुई है और इसी कारण संविधान के अनुच्छेद 342 ने जनजातियों को. परिभाषित किया है। अब प्रश्न उठता है कि संविधान ने जनजातियों को परिभाषित करने के लिये कौन सी कसौटियों या आधारों को अपनाया है ? 1952 में प्रकाशित अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग ने कुछ कसौटियों को प्रस्तुत किया है। इन कसौटियों में निम्न आधार सम्मिलित किए गये हैं :- द द 1. पृथक्करण 2. प्रजातीय लक्षण 3. भाषा ओर बोली 4. खाने की आदतें, मांसाहारी भोजन 17107517515, 0.২. 11051690810 0০০11 (४0७85 [0015551, 1952.




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