प्राचीन भारतीय संग्रामिकता का इतिहास : एक अध्ययन | Prachin Bhartiya Sangramikta Ka Itihas Ek Addhyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थी । इन्द्र ने नगरो को उजाड दिया ओर काले दासो (अनार्यो) की सेनाम का नष्ट कर दिया 137एक स्थल पर कृष्ण वर्ण वाले शत्रुओं के युद्ध क्षेत्र में 50000 व्यक्तियों के संहार का वर्णन किया गय है 1? प्राचीन भारतीय साहित्य में युद्ध का वर्णन पूर्ण विकसित रूप में प्रस्तुत किया गया है । भारतीय धर्म, ग्रन्थ इस बात पर ज्यादा बल देते हैं कि राज्य की स्थापन। केवल इसलिए होती थी कि मत्स्य न्याय की.स्थिति की समाप्त कर सुखी नगरिक जीवन की स्थापना की जाय । भारतीय सप्तांगी राज्य में प्रमुख ` स्थान राज्य ध्यक्ष को प्राप्त हे, ॐ इसलिए उसे दण्डधर उपधि से भी विभूशित किया गय। है वयोकि वह॒ ` अनियंत्रित लोगों को दबाव में रखता हे और अभंद्र तथा अनीतिमान को दण्डित करता है 144 विभिन्‍न ग्रन्थ भिन्त भिन्त प्रकार की शासन प्रणालियों का वर्णन करती है लेकिन शासनध्यक्ष काजो गुण सामने उभर कर জালা . है वह सामरिक महत्व को विशेष रूप में निखार दिये हुए है । शुक्रनीत में कहा गया है कि जो राजा बलव॒न्न ५ बुद्धिमान, ूरवीर ओर युक्त पराक्रमी होता है वह राजा द्रव्य से पूरण पृथ्वी को भोगता ओर वी राजा भूपति ` . ` कहलाने योग्य है 112 लगभग समानता छिये हुए यही व्याख्या हर ग्रन्थ प्रस्तुत करता है ।राजाभिषेक के समय जब राजा शपथ ग्रहण करता था उस समय भी वह ज्यादा महत्व राष्ट्र तथा अपने नागरिकों की रक्षा का देता ছু था । शान्तिपूर्ण के अनुसार राजा पृथु ने देवों और मुनियों के समक्ष शपथ ली थी कि वह राष्ट्र की रक्षा करेगा, . दण्डनी तशास्तर, द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन करेगा तथा अपने मन की कमी नहीं करेगा 143 नारदपुराण ` तो राजा को जनता का नौकर मानता है, उनकी धारणा हे कि राजा प्रजा का नौकर है, जिसकी रक्षा करने के ও कारण उसे वेत रूप मेँ कर दिया जाता है ^“ कौटिल्य का अर्थशास्न कता है कि कोई भी सदाचारी राजा ` | वही पू0-55 तथा ऋगवेद 2/20-6/7 ` वही पृ0-55 तथा ऋगवेद 4/16/13 ) बृहदारण्यक उगरिनिषद, 1/4/14 ) महाभारत, शान्तिपर्व, 15/8 ५. ^ १ ) व्यास जी, किंगवडेकर, एवं शास्मीय रामचन्द्र, महाभारत शान्तिपर्व-15/8 . ) शुक्रनीति-1/174 एवं ः ५ शमं], योगेन्द्र कुमारः प्राचीन भारतीय राजनय एवं युद्ध तकनीकि पू0-16 श, ' : व्याप्त जी किंगवडेकर, एवं शास्त्री प0 रामचन्द्र, महाभंरत शान्तिपर्व 59/1%/ 108 ` नारदपुराण (प्रकीर्णक 48) तथा योगेन्द्र कुमार : प्राचीन भारतीय राजनय एवं युद्ध तकनीकि पृ0- 16 `




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