साहित्य का इतिहास दर्शन एवं आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के हिन्दी साहित्येतिहास का आलोचनात्मक अध्ययन | Sahitya Ka Itihas Darshan Avam Aacharya Hajari Prasad Dwivedi Ke Hindi Sahityetihas Ka Aalochnatmak Adhyyan
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
62 MB
कुल पष्ठ :
442
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'प्रगतिवाद' ह्ासोन्मुखी छायावाद की युग साहित्य से ही जन्मा
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है फिर भी अपनी मूलभूत प्रेरणा में उससे एकदम भिन्न है यह व्यापक सामाजिक
चेतना वाला साहित्य है जिसमें मार्क्स सामाजिक यथार्थ को अतिशव महत्त्व दिया
गया है। 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई, प्रेमचन्दर इसके
सभापति हए! सामाजिक यथार्थ, सामाजिक समस्याओं के प्रति स्चेष्टता क्रान्ति
की भावना, वौद्धिकता एवं व्यंग्य का प्रसार, राष्ट्रीय भावना, नारी स्वातंत्र्य
की पुकार, शोपषितों के प्रति करुण गान, मुक्त छन्द इस वाद की प्रमुख
प्रवृत्तियों हैं तो प्रमुख कवियों में शिवमंगल सिंह सुमनः, ` नागार्जुन, पन्त,
प्रमुख हैं। प्रगतिवाद के दोष की चर्चा करते हुए आचार्य दिवेदी ने लिखा
है कम्युनिस्ट पार्टी से जिन साहित्यकारों का सम्बन्ध .है उनको पार्टी के निर्देश
पर चलना पड़ता है, पार्टी का इस प्रकार स्वतंत्र चिंतन के मार्ग में आना द्वितकर
नहीं हो सकता कई प्रगतिवादी लेखक पार्टी के अंकुश को वर्दए्त न कर
सकने का कारण उससे अलग हो गये।
साहित्येतिहल के विकास में आचार्य द्विवेदी का योगदान यह
अंतिम अध्याय है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के वाद हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण इतिहासकार आचार्य हजारी प्रसाद हिवेदी हैं। आचार्य शुक्ल के बाद
हिन्दी में कामचलाऊ इतिहासकार और आलोचक बन जाना तो सरल है लेकिन
सार्थक .और समर्थ इतिहासकार बनना दुष्कर। आचार्यं शुक्ल ने भारतीय और
पाश्चात्य रचना तथा आलोचना की परम्पराओं की गम्भीर ज्ञान, स्वतंत्र चिंतन,
गहरी कलात्मक संवेदनशीलता, सामाजिक चेतना और वस्तुनिष्ठ दृष्टि के आधार
पर एक सुनिश्चित मूल्य व्यवस्था और मूल्यांकन की पद्धते का विकास किया।
उन्होंने अपने निर्मात साहित्य विवेक और हिन्दी साहित्य के विकास की गति की
अचूक पहचान के कारण आधुनिक हिन्दी आलोचना की प्रगतिशील परम्परा
का सृत्रपात किया और हिन्दी साहित्य के इतिहास लंखन का एक पक्का और
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